
हर दिन सुबह आती है
रात के गुजरने के
ठीक पहले
जैसे बड़ी जल्दी
पड़ी हो उसको
उन अंधेरों को मिटाने की
फैला रखा था
जिसे रात ने
आसमान पर
पूरे एकाधिकार से
एक योद्धा की तरह
वह जीत जाना
चाहती है लड़कर
उस तमस से
खोलकर बिखरा देना
चाहती है अपनी
सुनहरी अलकों को
क्षितिज के आखिरी बिंदु तक
हर दिन सुबह आती है
अपनी रेशमी किरणों की
चतुरंगिणी सेना लिए
और छोड़ देती है
उन्हें हर ओर
हर सोते को जगाने के लिए
अब कहीं कोई
शेष नहीं है साक्ष्य
निशीथ की कालिमा की
चारों तरफ पसरा है
प्रकाश …..बस प्रकाश।
कवि-अलका ‘सोनी’ (23 नवंबर 1986-) बर्नपुर, पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं, उनका जन्मस्थान झारखंड (भारत) है । उनकी शिक्षा बी. ए. ( हिंदी प्रतिष्ठा ), एम. ए. ( हिंदी ), बी. एड. है । देश विदेश के अनेक बड़े समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में उनकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है । उनकी रुचियां लेखन, अध्ययन, बागवानी व संगीत सुनना हैं ।