मेरी क्यूरी का पत्र हेनरिटा के नाम

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नोबेल विजेता वैज्ञानिक मेरी क्यूरी ने अप्रैल 1886 में हेनरिटा को यह पत्र लिखा जिसमें उन्होंने अपने जीवन की कठिनाइयों को बयां किया।

काश! मेरा व्यवहार तुम देख पातीं !!

मेरे पद से अपेक्षित है वैसा ही जीवन मैं जी रही हूं। मैं अपने विद्यार्थियों को को पढ़ाती हूं और खुद भी कभी-कभार पढ़-लिख लेती हूं, परंतु यह कार्य जितना दिखता है, उतना आसान भी नहीं है, क्योंकि इस घर में हमेशा मेहमानों की आवाजाही लगी रहती है, जिससे मेरे अध्ययन-अध्यापन कार्य में बाधा पड़ती रहती है। कभी-कभी तो मुझे बड़ी कोफ्त होती है, क्योंकि मेरी छात्रा एंडजिया भरपूर उत्साह से ऐसे मौक़ों को भुनाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखती। उससे तर्क-वितर्क कर, समझा-बुझाकर रास्ते पर लाना टेढ़ी खीर है। आज भी ऐसा ही एक प्रसंग छिड़ गया। उठने के तय समय पर वह उठना ही नहीं चाहती थी। अंततः मुझे शांत संयत रहते हुए उसे खींचकर बिस्तर से अलग करना पड़ा। मैं अंदर से उबल रही थी, पर… ख़ैर ! तुम्हें कल्पना नहीं होगी कि ऐसे में मुझ पर क्या बीतती है? इस तरह की बेवकूफ़ी मुझे घंटों परेशान रखती है। पर मैं उस लड़की से उसकी बेहतर परफॉर्मेंस निकलवाने के लिए कटिबद्ध हूं। घरवालों के साथ मिल-बैठकर रहने वाली बातचीत के बारे में न कहना ही अच्छा।

गप्पें और कोरी गप्पें बस! चर्चा के विषय भी वही घिसे-पिटे – पड़ोसी, डांस, पार्टियां, कोई नावीन्य नहीं, कोई ठोस बातचीत नहीं। अगर नृत्यों के बारे में बात करें तो मानना पड़ेगा कि यहां की युवतियों से बेहतर नाचने वालियां दूर-दूर तक ‘खोजने पर भी नहीं मिलेंगी। वे आदर्श नर्तकियां हैं। इस मामले में वे निश्चित रूप से बुरी नहीं हैं। कुछ-कुछ युवतियां बुद्धिमती भी हैं। पर उनकी शिक्षा-दीक्षा की कमी ने उनके मानसिक विकास में वांछित योगदान नहीं दिया है। इन अमर्यादित मूर्खतापूर्ण नाच गानों की महफिलों, खाने-पीने की पार्टियों ने तो उनकी मति मार दी है, उनकी प्रत्युत्पन्नमति को पूरी तरह विनष्ट कर दिया है। तरुण पुरुष मंडली में भी अच्छे नर्तक हैं और थोड़े-बहुत ज़रा-ज़रा प्रज्ञावान भी हैं।

हां, लड़कियां हों या लड़के, वे सकारात्मक सोच या ‘मजदूरों के प्रश्न’ जैसे .. जटिल विषय अप्रिय जानकर टाल देते हैं। ऐसा माना जा सकता है कि उन्होंने ये शब्द सुने ही न हों, परंतु ऐसा होना थोड़ा विचित्र जान पड़ता है। जेड कुनबा तुलनात्मक रूप से परिष्कृत लगता है। मि. जेड यद्यपि जरा पुराने आचार-विचार वाले हैं तथापि वे खुले दिलवाले, सहृदय और विवेकशील हैं। उनकी पत्नी के साथ रहना जरा मुश्किल भले ही जान पड़ता हो पर उनसे पटरी बैठ जाए तो वह बड़ी भली औरत हैं। मुझे लगता है कि मेरी और उनकी अच्छी पट रही है। काश! मेरा आदर्श और अनुकरणीय व्यवहार तुम देख पातीं!! हर रविवार या छुट्टी के दिन मैं बिना हीले – हवाले, सिरदर्द या सर्दी-खांसी का बहाना न बनाकर चर्च जाती। हूं। स्त्रियों के उच्चतर शिक्षण के बारे में शायद ही कोई शब्द मुंह से निकालती हूं। अर्थात् मोटे तौर पर मेरे पद से जो अपेक्षाएं हैं, उन पर मैं खरी उतर रही हूं। उस पद के अनुरूप शालीन व्यवहार और बातचीत ही मेरे द्वारा की जाती है। ईस्टर की छुट्टियों में मैं वार्सा जाने वाली हूं। इस विचार मात्र से मेरे शरीर का अंग-प्रत्यंग पुलकित होकर ख़ुशी से ऐसे मचल रहा है कि मुझे अपने-आप पर क़ाबू रखना मुश्किल हो रहा है।

— मेरी