जीवन ऊर्जा: विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई भी विद्यालय नहीं

0
280

धनपत राय श्रीवास्तव एक भारतीय लेखक थे जो अपने आधुनिक हिंदुस्तानी साहित्य के लिए प्रसिद्ध थे। वे अपने कलम नाम ‘प्रेमचंद‘ से बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 में हुआ था। प्रेमचंद हिंदी और उर्दू सामाजिक कथा साहित्य के मार्ग-निर्माता थे। वे 1880 के दशक के अंत में, समाज में प्रचलित जाति पदानुक्रम और महिलाओं और मजदूरों की दुर्दशा के बारे में लिखने वाले पहले लेखकों में से एक थे। वह भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं। उनकी रचनाओं में एक दर्जन से अधिक उपन्यास लगभग 300 लघु कथाएं, कई निबंध और कई विदेशी साहित्यिक कृतियों का हिंदी में अनुवाद शामिल हैं। 8 अक्टूबर 1936 में उनका देहांत हो गया

विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई भी विद्यालय आज तक नहीं हुआ। आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपना घर याद आता है। आदमी का सबसे बड़ा शत्रु उसका अहंकार है। सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी हैं। जवानी आवेशमय होती है, वह क्रोध से आग बन जाती है तो करुणा से पानी भी। जिस बंदे को दिन की पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए इज्‍जत और मर्यादा सब ढोंग है। अन्याय होने पर चुप रहना, अन्याय करने के ही समान है। कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है। निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है। जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है; उनका सुख छीनने में नहीं। आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म ओर अधिकार है। मन एक डरपोक शत्रु है जो हमेशा पीठ के पीछे से वार करता है। अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए, तो यह उससे कहीं ज्यादा अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे। सौभाग्य उसी को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहते हैं। क्रोध मौन सहन नहीं कर सकता हैं। मौन के आगे क्रोध की शक्ति असफल हो जाती है। दौलतमंद आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है; उनका सुख लूटने में नहीं। साक्षरता अच्छी चीज है और उससे जीवन की कुछ, समस्याएं हल हो जाती है। बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता। कुल की प्रतिष्ठा भी सदव्यवहार और विनम्रता से होती है, हेकड़ी और रौब दिखाने से नहीं।