श्री गुरु नानक जी सिख धर्म के संस्थापक थे और वे दस सिख गुरुओं में से पहले गुरु हैं। उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 में हुआ था। कहा जाता है कि श्री नानक ने पूरे एशिया में दूर-दूर तक यात्रा कर लोगों को ‘इक ओंकार’ का संदेश दिया था। उन्होंने समानता, भाईचारे के प्रेम, अच्छाई और सद्गुण पर आधारित एक अद्वितीय आध्यात्मिक, सामाजिक और राजनीतिक मंच की स्थापना की थी। सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में श्री नानक जी के शब्दों को 974 काव्य भजनों या शब्द के रूप में दर्ज किया गया है। श्री गुरु नानक जी 22 सितम्बर 1539 को परमात्मा में विलीन हो गए।
जिस व्यक्ति को खुद पर विश्वास नहीं है, वो कभी भी ईश्वर पर पूर्ण-रूप से विश्वास नहीं कर सकता। कर्म भूमि पर फल के लिए श्रम सबको करना पड़ता है। अहंकार से ही मानवता का अंत होता है। अहंकार कभी नहीं करना चाहिए, बल्कि हृदय में सेवा भाव रख जीवन बिताना चाहिए। अपने जीवन में कभी ये न सोचे की यह असंभव है। जब आप किसी की मदद करते हैं, तो ईश्वर आपकी मदद करता है। हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहो। सभी मनुष्य एक ही हैं, न कोई हिन्दू और न कोई मुसलमान, सभी एक समान हैं। केवल वही वाणी बोले, जो आपको सम्मान दिलाए। कोई भी ईश्वर को तर्क के माध्यम से समझ नहीं सकता, भले ही वह उम्र भर तर्क ही क्यों न करता रहे। आप जो भी बीज बोएंगे, उसका फल आपको देर सबेर जरूर मिलेगा। जिन्होंने प्रेम किया है, वे वही हैं जिन्होंने परमात्मा को पाया है। संसार को जीतने से पहले स्वयं अपने विकारों पर विजय पाना अति आवश्यक है। जब शरीर मैला हो जाता है, तो हम पानी से उसे साफ़ कर लेते हैं। उसी तरह जब हमारा मन मैला हो जाए, तो उसे ईश्वर के जाप और प्रेम द्वारा ही स्वच्छ किया जा सकता है। व्यक्ति अपना जीवन सोने और खाने में गवां देता है और उसका महत्वपूर्ण जीवन बर्बाद हो जाता है। जो व्यक्ति किसी का हक छीनता है उसे कही भी सम्मान नहीं मिलता। इसलिए कभी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए। यदि लोग अपने धन का प्रयोग सिर्फ अपने लिए और खजाना भरने के लिए करते हैं, तो वह शव की तरह है, लेकिन यदि वे इसे दूसरों के साथ बांटने का निर्णय लेते हैं, तो वह पवित्र प्रसाद बन जाता है। सत्य को जानना हर एक चीज से बड़ा है, उससे भी बड़ा है सच्चाई से जीना।