महात्मा गांधी का पत्र जवाहरलाल नेहरू के नाम

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…वहां हम भी एकदम निर्दोष नहीं हैं

प्रिय जवाहरलाल,
मुझे मालूम हुआ है कि तुम सबको कार्य-समिति के प्रस्तावों पर भयंकर पीड़ा हुई है। मुझे तुमसे हमदर्दी है और पिताजी की बात सोचकर मेरा दिल टूटता है। उन्हें जो पीड़ा हुई होगी, उसकी मैं अपने मन में कल्पना कर सकता हूँ। परंतु मुझे यह भी महसूस होता है कि यह पत्र अनावश्यक है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि पहले आघात के बाद स्थिति सही तौर पर समझ में आ गई होगी। बेचारे देवदास की बचपन-भरी नासमझियों का हमारे दिमाग पर बहुत बोझा नहीं होना चाहिए। बिलकुल संभव है कि उस गरीब लड़के के पैर उखड़ गए हों और उसका मानसिक संतुलन जाता रहा, परंतु इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि असहयोग-आंदोलन से सहानुभूति रखनेवाली गुस्से से पागल भीड़ ने पुलिस के सिपाहियों कौ बहशियाना ढंग से हत्या की। इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि वह भीड़ राजनैतिक चेतना रखनेवाली भीड़ थी। ऐसी साफ चेतावनी पर ध्यान न देना बड़ा अपराध होता। मैं बता दूं कि यह चरम सीमा थी। वाइसराय के नाम मेरी चिट्ठी शंकाओं से खाली नहीं थी, जैसा कि उसकी भाषा से जाहिर है। मद्रास की करतूतों से भी मैं बहुत अशांत हुआ था, लेकिन मैंने चेतावनी की आवाज को दबा दिया। मुझे कलकत्ता, इलाहाबाद और पंजाब से हिंदुओं और मुसलमानों के पत्र मिले थे। यह सब गोरखपुर की घटना से पहले की बात है। उनका कहना था कि सारा दोष सरकारी पक्ष का ही नहीं है; हमारे लोग आक्रमणकारी, हेकड़ और धमकानेवाले बनते जा रहे हैं, हाथ से निकले जा रहे हैं और उनका रवैया अहिंसक नहीं है| जहाँ फौरोजपुर जिरके की घटना सरकार के लिए अपयशकारी है वहां हम भी एकदम निर्दोष नहीं हैं। हकीमजी ने बरेली के बाबत शिकायत की। मेरे पास झज्जर के बारे में कड़ी शिकायतें हैं। शाहजहांपुर में भी टाउन हॉल पर जबरदस्ती कब्जा करने की कोशिश की गई। कन्नौज से भी. खुद कांग्रेस के मंत्री ने तारदिया कि स्वयं-सेवक उद्दंड हो गए हैं और हाईस्कूल पर धरना लगाकर सोलह वर्ष से छोटे लड़कों को स्कूल जाने से रोक रहे हैं। गोरखपुर में छत्तीस हजार स्वयंसेवक भरती किए गए, जिनमें से सौ भी कांग्रेस की प्रतिज्ञा का पालन नहीं करते। जमनालालजी मुझे बताते हैं कि कलकत्ता में घोर असंगठन है।

महात्मा गांधी