JAIPUR : महिलाओं की लेखनी में रिश्तों का अनुवाद करना सबसे बड़ी चुनौती है : रॉकवेल

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जयपुर: (JAIPUR) अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता उपन्यास ‘रेत समाधि’ का अनुवाद करने वालीं डेजी रॉकवेल ने बृहस्पतिवार को कहा कि महिलाओं की कथाओं में रिश्तों की भावनाओं का अनुवाद करना मुश्किल होता है क्योंकि उनके रिश्ते ‘‘परिवारों के अंदर ज्यादा गहराई’’ से जुड़े होते हैं।

‘रेत समाधि’ पर हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री के साथ काम करने से पहले रॉकवेल ने उपेंद्र नाथ अश्क के ‘‘गिरती दीवारें’’, भीष्म साहनी के ‘‘तमस’’ और कृष्णा सोबती के ‘गुजरात पाकिस्तान से, गुजरात हिंदुस्तान तक’ उपन्यास का अनुवाद किया।उन्होंने कहा, ‘‘रिश्तों की भावनाओं का अनुवाद करना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। मुझे लगता है कि पुरुषों की लेखनी के मुकाबले महिलाओं की लेखनी में यह असल में बड़ी चुनौती है। मैंने केवल महिलाओं की किताबों का अनुवाद करने का फैसला करने से पहले पुरुषों की तीन-चार किताबों का अनुवाद किया है।’’

अमेरिकी अनुवादक ने यहां जयपुर साहित्य उत्सव के पहले दिन बातचीत में कहा, ‘‘मुझे सबसे बड़ी चुनौती रिश्तों की भावनाओं से निपटने में आयी क्योंकि महिलाओं की कथाओं में रिश्ते परिवार के अंदर ज्यादा गहराई से जुड़े होते हैं।’’
रॉकवेल ने कहा, ‘‘आपको यह देखना होता है कि परिवार, रिश्ते और संबद्धता के रंग न बिखरे। इसलिए मैं अक्सर क्या करती हूं कि मैं हर रिश्ते को एक नाम दे देती हूं तो मैं इसे बहू, बड़े और बेटी जैसे नाम देती हूं ताकि उनका किरदार नामों की तरह हो।’’‘रेत समाधि’’ 80 वर्षीय महिला ‘‘मां’’ की कहानी है जो अपने पति की मौत के बाद गहरे अवसाद में चली गयी है।

गीतांजलि श्री की महिलाओं के संबंधों के साथ आत्मीयता 2000 में आए उनके उपन्यास ‘‘माई’’ के साथ से ही जुड़ी है जिसे 2001 में ‘क्रॉसवर्ड बुक अवार्ड’ के लिए चुना गया था।‘माई’ का जिक्र करते हुए श्री ने कहा कि एक महिला को यह साबित करने के लिए अपने घर से बाहर निकलने की जरूरत नहीं है कि वह ताकतवर है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे उपन्यास अंत की ओर बढ़ता है तो लेखक और पाठक दोनों इस रूढ़िवादिता को ‘‘तोड़ते’’ हैं।जयपुर साहित्य महोत्सव 23 जनवरी को संपन्न होगा।

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