Jabalpur : हाईकोर्ट ने 3 महीने में भर्ती पूरी करने के निर्देश के साथ हटाई सिविल जज भर्ती पर लगी रोक

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जबलपुर : (Jabalpur) मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सिविल जज भर्ती पर प्रक्रिया से जुड़ी एक अहम सुनवाई में आदेश जारी किया है। इस आदेश के मुताबिक, सिविल जज भर्ती प्रक्रिया को अब तीन महीने के भीतर पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं, हालांकि हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि इस भर्ती से संबंधित सभी नियुक्तियां तब तक पक्की नहीं मानी जाएंगी जब तक इस मामले में कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आता। इसका मतलब यह है कि, भर्ती प्रक्रिया तो तीन महीने में पूरी की जाएगी, लेकिन अंतिम नियुक्तियां अभी भी कोर्ट के फैसले पर निर्भर रहेंगी। कोर्ट ने निर्देश के साथ भर्ती पर लगी रोक हटा दी है

विवाद का प्रमुख कारण यह था कि आवेदन प्रक्रिया में आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को अनारक्षित वर्ग की तरह ही योग्य ठहराया गया, जबकि यह संविधान के तहत उन वर्गों के विशेष अधिकारों का उल्लंघन करता है। साथ ही, साक्षात्कार में 50 अंकों में से 20 अंक पाना अनिवार्य किया गया, जो कि कई उम्मीदवारों के मुताबिक असमान और अवैज्ञानिक था। ये सभी बिंदु एक संवैधानिक चुनौती का कारण बने और उच्च न्यायालय में इसे लेकर याचिका दायर की गई। इसके अलावा, अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को चयनित करने में आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को बाहर कर दिया गया, जबकि संविधान के अनुच्छेद 335 के तहत एससी,एसटी को उनके सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ी पान के आधार पर शिथिल मापदंडों पर चयनित किया जाना चाहिए था

इस मामले में नया मोड़ तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने 3 मार्च 2025 को राज्य सरकार को आदेश दिया कि सिविल जज के रिक्त पदों की तत्काल पूर्ति की जाए, ताकि न्यायिक व्यवस्था पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद, हाईकोर्ट को अपनी 24 जनवरी 2025 के स्थगन आदेश में बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस मामले की एक सुनवाई 15 मई को भी हुई थी, जिसके बाद कोर्ट ने इस मामले को समर वेकेशन के बाद तय कर दिया था। इसके बाद अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर के द्वारा इस मामले की संवेदनशीलता के चलते अर्जेंट हियरिंग की रिक्वेस्ट की गई थी, जिसके बाद कोर्ट का आदेश मॉडिफाई हुआ है।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 17 नवंबर 2023 को सिविल जज (प्रवेश स्तर) के 138 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था। इस विज्ञापन में विभिन्न वर्गों जैसे अनारक्षित,अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और दिव्यांग के लिए पद निर्धारित किए गए थे। हालांकि, भर्ती के इस विज्ञापन के नियमों और प्रावधानों को लेकर कई अभ्यर्थियों ने आपत्ति जताई। उनका कहना था कि इन नियमों में कुछ खामियां थीं, जो उनके अधिकारों का उल्लंघन करती थीं। सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा। उन्होंने भर्ती प्रक्रिया में जो विसंगतियां थीं, उनके बारे में विस्तार से कोर्ट को बताया।