1984 के बाद कांग्रेस की हो गई विदाई
हमीरपुर : हमीरपुर-महोबा संसदीय सीट पर मोदी की लहर में कांग्रेस का अब पूरी तरह से सफाया हो गया है। पिछले 39 सालों से कांग्रेस का न सिर्फ वोटों का ग्राफ लगातार गिर रहा है बल्कि उसका मजबूत गढ़ भी ध्वस्त हो चुका है। इसके बावजूद यहां कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर अपनी जनाधार वापस लेने की तैयारी में जुट गई है।
बुन्देलखंड की हमीरपुर-महोबा संसदीय सीट पर किसी जमाने में कांग्रेस का वर्चस्व कायम था। वर्ष 1952 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत का परचम फहराया था। यही नहीं 1952, 1962 के आम चुनाव में भी कांगेस ने यहां की सीट पर हैट्रिक लगाई थी। पहली बार अटल बिहारी बाजपेयी की जनसंघ पार्टी ने वर्ष 1967 में कांग्रेस को तगड़ा झटका देते हुए संसदीय सीट पर कब्जा किया था। संसदीय सीट हाथ से निकलने के बाद कांग्रेस ने फिर तैयारी की और 1971 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ पार्टी के उम्मीदवार को चुनावी समर में परास्त कर कांग्रेस ने फिर सीट पर कब्जा कर लिया था। वर्ष 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस को फिर हमीरपुर-महोबा संसदीय सीट गंवानी पड़ी।
यहां की सीट लोकदल पार्टी के खाते में आई थी। चुनाव के बाद कांग्रेस का यहां जनाधार और बढ़ा जिसके कारण 1980 और 1984 के चुनाव में भी कांग्रेस ने सीट पर जीत का परचम फहराया। लेकिन अगले ही चुनाव में कांग्रेस का मजबूत गढ़ ढह गया। लोकसभा के पिछले तीन चुनावों में ही यहां संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस का जनाधार भी खिसक गया है। मोदी की लहर में कांग्रेस के पास पांच फीसदी वोट भी नहीं बचे हैं। किसी जमाने में इस पार्टी का झंडा शहर से लेकर गांवों तक लोगों के दिलों में राज करता था लेकिन अब शहर में ही पार्टी का झंडा लेकर चलने को कोई तैयार नहीं है।
हमीरपुर जिला कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष हिमांशु सैनी का कहना है कि कांग्रेस मिशन-2024 को लेकर बड़ी तैयारी में जुटी है। शहर से लेकर गांवों तक खोया जनाधार वापस लाने के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए है। लोग अब कांग्रेस पार्टी से न जुड़ रहे है। बताया कि पार्टी सर्व समाज के लोगों को लेकर राजनीति करती है।
आम चुनाव में छह बार कांग्रेस ने सीट पर किया था कब्जा
1952 से लेकर अभी तक हुए लोकसभा के चुनावों में हमीरपुर-महोबा संसदीय सीट पर कांग्रेस पार्टी ने छह बार जीत दर्ज कराई थी। शुरू में कांग्रेस कांग्रेस से एमएल द्विवेदी पहली बार सांसद बने थे। ये 1962 तक लगातार तीन बार सांसद रहे। लेकिन 1967 के चुनाव में वह एक संत से चुनाव हार गए थे। यहां के संत स्वामी ब्रह्मानंद ने भारतीय जनसंघ से पहली बार चुनाव मैदान में आए थे और वे भारी मतों से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। इसके बाद 1971 में यहां की सीट फिर कांग्रेस के कब्जे में आई। जबकि 1980 व 1984 में भी कांग्रेस ने यहां की सीट पर जीत का परचम फहराया था।
39 सालों में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का बिखर गया वोट
लोकसभा चुनावों में हमीरपुर-महोबा संसदीय सीट पर वापसी के लिए यहां कांग्रेस पिछले 39 सालों से छटपटा रही है लेकिन मोदी की लहर में मजबूत जनाधार ही कांग्रेस के हाथ से निकल गया है। वर्ष 2009 के आम चुनाव में संसदीय सीट पर जातीय समीकरणों के उलटफेर होने के कारण कांग्रेस को बसपा से तगड़ा झटका मिला था। पूरे संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस और बसपा की सीधी फाइट हुई थी लेकिन बसपा की रणनीति के आगे कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा था। वर्ष 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस पूरी तरह से रसातल पर पहुंच गई। उसके वोटों का ग्राफ पांच फीसदी से नीचे आ गया था।