मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले एनसीपी नेता अजित पवार ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने चुनाव के बाद की रणनीति, मुख्यमंत्री पद की महत्वता और पार्टी में नेतृत्व को लेकर अपनी राय व्यक्त की। अजित पवार ने स्पष्ट किया कि उनके लिए मुख्यमंत्री पद प्राथमिकता नहीं है, बल्कि यह एक द्वितीयक मुद्दा है। उन्होंने कहा कि असली उत्तराधिकारी कौन होगा, यह फैसला जनता करेगी, और वे खुद को शरद पवार का वारिस मानने की बजाय जनता के फैसले का सम्मान करेंगे। अजित ने समझौतों की जरूरत पर भी बल दिया, यह कहते हुए कि राजनीति में कुछ समय के लिए दो कदम आगे या पीछे चलना पड़ता है। उनका मानना है कि समझौता करने वाला व्यक्ति ही भविष्य में सफल होता है।
चुनाव के बाद भी महायुति में ही रहूंगा
अजित पवार ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद पाला बदलने की अटकलों को खारिज कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि चुनाव के बाद भी वे महायुति गठबंधन में बने रहेंगे। उन्होंने कहा कि वे अपनी भूमिका को आगे बढ़ा रहे हैं और महायुति में अपनी प्रतिबद्धता पर कायम हैं। महाराष्ट्र की 288 सीटों के लिए 20 नवंबर को एक ही चरण में मतदान होगा, और नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। अजित पवार बारामती से चुनाव लड़ रहे हैं, और उनके लिए यह चुनावी मैदान उनकी साख की परीक्षा है।
बारामती में अजित की प्रतिष्ठा की लड़ाई
बारामती विधानसभा सीट पर इस बार चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है, क्योंकि यहां अजित पवार और शरद पवार के बीच एक अप्रत्यक्ष पारिवारिक संघर्ष देखने को मिल रहा है। शरद पवार ने अपने पोते युगेंद्र पवार को इस सीट से मैदान में उतारा है, जिससे यह सीट उनके परिवार के भीतर एक प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई है।
बारामती सीट शरद पवार की पारंपरिक सीट रही है, और पिछले छह दशकों से इस पर उनका प्रभाव बना हुआ है। यदि अजित पवार यहां से जीत जाते हैं, तो यह उनकी राजनीतिक साख के लिए एक महत्वपूर्ण जीत होगी और शरद पवार को एक बड़ा झटका लगेगा। वहीं, यदि अजित यहां से हारते हैं, तो उनके राजनीतिक भविष्य पर असर पड़ सकता है, और विशेषज्ञों का मानना है कि इस पराजय से शायद वे एक बार फिर अपने चाचा शरद पवार की शरण में लौट सकते हैं।
लोकसभा चुनाव में भी अजित पवार को झटका लगा था, जब उनकी पत्नी को बारामती से हार का सामना करना पड़ा था, और उन्हें यह शिकस्त उनकी ननद सुप्रिया सुले ने दी थी। इस बार भी इस सीट का परिणाम 23 नवंबर को ही सामने आएगा, जो यह तय करेगा कि बारामती में किसकी प्रतिष्ठा बनी रहती है।