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पांच हजार के लिए वे बावरे हो गए थे

बात कुछ महीने पहले की है। लंबे समय के बाद मैं दो दिन की छुट्टी पर गांव पहुंचा। गांव आते ही मैं कुछ और ही हो जाता हूं, जिसमें मैं ठहर कर खुद को देख पाता हूं। अपने आसपास नजर दौड़ा पाता हूं, कह सकते हैं कि गहरी सांस लेता हूं। मैं समझता हूं कि शहर में ट्रैफिक सिर्फ सड़कों पर नहीं होता, हमारे दिमागों में भी एक के बाद एक काम लाइन से आते-जाते रहते हैं। खैर, मैं गहरी सांस के साथ गांव पहुंचा। देर तक लोगों से बातें करना, दोस्तों से मिलना सुकून से भर रहा था।मैंने स्नान किया और गांव के मंदिर की तरफ बढ़ रहा था कि मेरी नजर काकू पर गई। बता दूं कि काकू मेरे घर के बगल में रहती हैं।

काकू ने मुझे मेरे बचपन में जब भी मौका मिला, कभी घी तो कभी माखन खिलाया था। मैं अपनी ‘काकू’ को बहुत दिनों बाद देख रहा था। ‘काकू’ अब काम और उम्र से थकी हुई लग रही थीं। काकू के पास न जमीन है, न संतान। मैं उनके करीब बढ़ा तो, मुझे देखते ही काकू की आंखों में आंसू आ गए। (जैसे तकलीफ में होने पर किसी अपने को देखकर हमारी आंखों में आंसू आ जाते हैं) मैं चकित हो गया और ‘काकू’ से पूछा कि आप रो क्यों रही हैं? मेरी ‘काकू’ ने मुझे जो बताया मैं स्तब्ध रह गया।

उन्होंने बताया कि तुम्हारे काका बावरे हो गए हैं। मैंने जानना चाहा कि क्या हुआ, तो उन्होंने बताया कि कुछ महीने पहले काका ने बैंक से बकरी खरीदने के लिए पांच हजार रुपए कर्ज लिए थे। पर कहीं से कोई इनकम न होने के कारण वे कर्ज वापस नहीं कर पाएं। अब जब भी बैंकर घर आते हैं, तो काका तनाव में आ जाते है। जैसे-जैसे दिन बीतते गए , काका का टेंशन बढ़ता गया। पिछले एक साल से वे गांव में बांवरे की तरह घूमते रहते हैं। वे खुद से बात करते हैं। वे इस बात को लेकर टेंशन में हैं कि मैं बैंक के पांच हजार रुपए कैसे चुकाऊंगा। सभी कहते हैं कि काका पागल हो गए हैं, वे कुछ भी बड़बड़ करते है, काम में कहीं ध्यान नहीं रहता है। काकू ने रोते हुए बताया की, मदद के लिए लेकिन कोई नहीं आता।

मैंने काकू को कहा कि ठीक है मैं देखता हूं और गांव में काका को तलाशने निकला, मैंने देखा कि वे बावरे हुए घूम रहे हैं। मैंने हंसते गाते काका को देखा था, पर उनकी इस हालत को देख मेरी आंखें नम हो गईं। मैं समझ नहीं पाया कि मैं इस घटना पर क्या कहूं। मुझे अंदर ही अंदर बेचैनी महसूस हुई। मेरे मन में बार-बार यही बात आ रही थी कि सिर्फ पांच हजार… दूसरे दिन मैं काकू को पैसे दे आया, पहले ले नहीं रहीं थीं, पर उनके आंसूं भी रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

उन्होंने जाने क्या-क्या आशिर्वाद दिया… मेरी आंखों के सामने बावरे काका का चेहरा और मन में सिर्फ एक बात रही, कि एक साल से आदमी पांच हजार के लिए पागल हुआ घूम रहा है… काका ने कर्ज चुका दिया, अब काका बिल्कुल ठीक हैं। काका गांव में घूमते हैं, लेकिन कोई उन्हें पागल नहीं बोलता। यह सुनकर मुझे राहत मिली।

पर एक सवाल अक्सर मेरे मन में आता है कि शहरों में जब हम कहीं घूमने जाते हैं, तो ऐसे ही पांच हजार खर्च कर देते हैं। पर गांव में? सही मायने में, अब मुझे पांच हजार रुपए की कीमत पता चली है।

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