विश्व कछुआ दिवस 23 मई विशेष
इटावा:(Etawah) विश्व भर में प्रत्येक वर्ष 23 मई को विश्व कछुआ दिवस मनाया जाता है। इसको मानने के पीछे का एक बड़ा कारण यह भी है कि वर्तमान में आधुनिक विकास की वैश्विक अंधी दौड़ में कुछ पैसों के लालच में नदियों किनारे होने वाले अवैध खनन और अंतरराष्ट्रीय बाजार में पौरुष शक्ति बढ़ाने वाली दवाइयों को बनाने में कछुओं की बेहद मांग होने की वजह से ही इनके अवैध शिकार होने के कारण इन बेजुबान जल गिद्धों के अस्तित्व पर अब बड़ा खतरा मंडराने लगा है।
दुनिया भर में साफ पानी के कछुओं की संख्या का तेजी से घटना एक बेहद चिंतनीय विषय भी है। देखा जाए तो धरती के स्वतः चलित इकोसिस्टम के लिए भविष्य में यह समस्या बड़ी खतरे की घंटी बन कर भी हमारे सामने आएगी। यह कहना है नगर पालिका परिषद के पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण के ब्रांड एम्बेसडर वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ आशीष त्रिपाठी का।
उनके अनुसार गंभीर रूप से विलुप्त हो रहे रेड क्राउंड रूफड टर्टल (बटागुर कछुआ) और थ्री इसट्राईपड रूफड टर्टल (तीन-धारियों वाला रूफड कछुआ) के सैकड़ों हैचलिंग चम्बल नदी क्षेत्र में इसी समय हर साल छोड़े जाते हैं, लेकिन उसमें से कितने बच्चे वयस्क हो पाते हैं और जीवित बने रहते हैं, इसका ठोस जवाब शायद कोई नहीं दे सकता। क्योंकि जून-जुलाई के आखिर में राजस्थान के विशाल कोटा बैराज डैम से आने वाली मटमैली बाढ़ इन नन्हें जल गिद्धों को कहां तक बहाकर ले जाती है या कितने कछुएं उस काल के गाल में समाहित हो जाते हैं या कहीं सुरक्षित बच जाते हैं इस यक्ष प्रश्न का प्रति उत्तर अभी भविष्य के गर्त में ही छुपा है।
मालूम हो कि विश्व टर्टल (कछुआ) दिवस पूरे विश्व भर में 23 मई को मनाया जाता है। जिसके माध्यम से नदी किनारे रहने वाले ग्रामीण लोगों में प्राकृतिक इकोसिस्टम के संचालन की समझ को विकसित करने और ज्यादातर स्कूली बच्चों तक जलीय स्थलीय जीवों के प्राकृतिक महत्व और उनके संरक्षण का संदेश पहुंचाने की एक कवायत संस्था (ओशन) ऑर्गनाइजेशन फॉर कंजरवेशन ऑफ इन्वायरनमेंट एंड नेचर द्वारा समय-समय पर की जाती है।
एक दशक पूर्व कछुओं पर शोध कार्य पूर्ण कर चुके वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ आशीष त्रिपाठी के अनुसार एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार भारत सहित दुनिया भर में साफ़ पानी के कछुएं की आबादी बहुत ही तेजी से घटती जा रही है जो बेहद चिंतनीय विषय भी है। इसके पीछे इन जलीय जीवों का अवैध शिकार, बालू खनन और प्राकृतिक आपदा भी एक मुख्य कारण है।
उन्होंने बताया कि विलुप्त प्रजाति के कछुओं के संरक्षण के लिए चंबल संरक्षण परियोजना वर्ष 2006 में शुरू की गई थी, जो कि उत्तर प्रदेश वन विभाग के साथ संयुक्त रूप से शुरू हुई। यह कछुआ संरक्षण की प्रमुख परियोजनाओं में से एक भी है जिसके अंतर्गत ताजे पानी के दो कछुओं की प्रजातियों में (जो कि खतरे में हैं) उन पर ही केंद्रित है जिन्हें रेड क्राउंड रूफड टर्टल और थ्री इसट्राईपड रूफड टर्टल कहते हैं।
हर साल इन दो विलुप्त होने के मुहाने पर खड़ी कछुओं की प्रजातियों के लगभग तीन सौ घोंसलों (नेस्ट) की चम्बल के आसपास क्षेत्र में रक्षा व प्रॉपर मॉनिटरिंग की जाती है। फिर इन घोंसलों (नेस्ट) को नदी के ही किनारे मानवनिर्मित हैचरी बना कर संरक्षित किया जाता है इन हैचलिंग (कछुओं के बच्चों) को तुरंत उनके जन्म स्थलों के पास से दूर ले जाकर साफ पानी में छोड़ दिया जाता है। यही नन्हें कछुएं नदी के जल में रहकर व्यस्क होने पर एक जल गिद्ध की तरह से कार्य करते हैं जो नदी में सड़े गले मांस को खाकर नदी के पानी को हमेशा ही साफ और स्वच्छ बनाये रखते हैं।
वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ आशीष ने कहा कि इसलिए हम सभी को नदियों की स्वच्छता में अपना योगदान देने वाले हमारी प्रकृति में मौजूद इन बेहद महत्वपूर्ण जलीय जीवों की रक्षा हर कीमत पर करनी चाहिये।