परसौनी कृषि विज्ञान केंद्र ने दिया वर्मी कम्पोस्ट बनाने का प्रशिक्षण
पूर्वी चंपारण:(Earlier in Champaran) जिले के परसौनी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार सृजन और प्राकृतिक तरीके से खेती को बढ़ावा देने के लिए 4 दिवसीय वर्मी कम्पोस्ट बनाने का प्रशिक्षण दिया।
केन्द्र के मृदा विशेषज्ञ डाॅ.आशीष राय ने बताया कि कीट विशेषज्ञ डाॅ.जीर विनायक,रूपेश,चून्नू,संतोष व विपिन कुमार के सहयोग से बड़ी संख्या में ग्रामीण युवकों और किसानों को कचड़े को केंचुओं की मदद से खाद में परिवर्तित करने का प्रशिक्षण दिया गया,ताकि इससे कचड़ा निस्तारण के साथ युवा रोजगार सृजित कर सके। साथ ही किसान रसायनिक उर्वरक के बजाय प्राकृतिक तरीके से खेती कर मिट्टी की सेहत दुरूस्त कर सके।
उन्होने बताया कि केंचुआ कचड़ा खाकर जो कास्ट छोड़ता है उसे ही वर्मी कम्पोस्ट कहते है,जो मिट्टी की उर्वरकता को बढ़ाती है।केंचुआ का भूमि सुधार में काफी महत्व है,यह अपनी क्रियाशीलता से मिट्टी के गुणवत्ता को तेजी सुधार करता है। प्राचीन समय में मिट्टी में केंचुओ की मात्रा ज्यादा होती थी।कालांतर में रासायनिक व कीटनाशकों खाद के प्रयोग से केंचुओं की संख्या में भारी कमी आई है।जिससे भूमि बीमार हो रही है। उन्होने बताया कि केंचुआ मिट्टी तथा कच्चे जीवांश को निगलकर फिर शरीर से छोटी-छोटी कास्टिग्स के रूप में निकालते हैं।यही वर्मी कम्पोस्ट है।
-कैसे बनाये वर्मी कम्पोस्ट
वर्मी कल्चर हेतु उपयुक्त पात्र का चुनाव करने के बाद उसमें छोटे-छोटे छिद्र करे ताकि उससे अतिरिक्त बाहर पानी निकल जाये।वर्मी बैड में सबसे नीचे वाले परत में छोटे-छोटे पत्थर ईंट के टुकड़े व मोटी रेत 3.5 सेमी. की मोटाई तक डाले।इसके बाद मिट्टी का 15 सेमी.मोटी परत बनाये।फिर इसे अच्छी तरह गीला करे।फिर केंचुए को मिट्टी की परत में छोड़ दे।इसके ऊपर ताजे गोबर के छोटे-छोटे लड्डू जैसे बनाकर रखे।फिर पूरे बॉक्स को लगभग 10 सेमी. मोटे सूखे कचरे की तह से ढँके। फिर वर्मीबैड को जूट की थैली से ढंक दे और हल्की पानी से उसे 30 दिनों तक गीला रखे।
फिर 30 दिन बाद वर्मीबैड में थोड़ा-थोड़ा जैविक कचरा समान रूप से फैला सकते है जिसकी मोटाई 5 सेमी से अधिक नही होनी चाहिए,अन्यथा कचड़े के सड़न से उत्पन्न गर्मी केंचुओं को नुकसान कर सकता है। सप्ताह में दो बार कचड़ा वर्मीबैड में डाल सकते है।ध्यान रहे वर्मीबैड में 50 प्रतिशत नमी के साथ 30 दिन तक केंचुओं को भोजन देते रहे।30 दिन बाद भोजन बन्द कर दें और केंचुओं के बॉक्स को ढंककर रख दें। ढंक कर रखना केंचुओं की सुरक्षा के लिये अनिवार्य है पर इस तरह से ढंके कि बॉक्स में हवा का वहन ठीक प्रकार से होता रहे।
-कैसे निकाले खाद
भोजन देने के 30-40 दिन बाद केंचुओं द्वारा पूर्ण जैविक पदार्थ/कचरा काले रंग के दानेदार वर्मीकास्ट में बदल जाता है। वर्मीकम्पोस्ट, वर्मीकास्ट एवं पूर्णतः सड़े हुए कचड़े की खाद का मिश्रण होता है। वर्मीकम्पोस्ट बन जाने के बाद केंचुओं के कल्चर बॉक्स में पानी देना बन्द कर दिया जाता है। नमी की कमी की वजह से केंचुए बॉक्स में नीचे की ओर चले जाते हैं, इस समय खाद को ऊपर से निकालकर अलग से एक पॉलिथीन पर छोटे ढेर के रूप में निकाल लिया जाता है। इस ढेर को भी थोड़ी देर धूप में रखा जाता है ताकि केंचुए नीचे की ओर चले जाएं कम्पोस्ट अलग कर लिया जाता है। नीचे के कम्पोस्ट को केंचुओं सहित पुनःकल्चर बॉक्स में डालकर दूसरा चक्र शुरू कर सकते है।
-जमीन में कैसे बनाये वर्मीबैड
जमीन पर वर्मीबैड बनाने के लिये सर्वप्रथम सूखी डंठलों एवं कचड़े को बैड की लम्बाई-चौड़ाई के आकार में बिछा दें।जिसमे मिश्रित कचरे जैसे सूखा कचड़ा, हरा कचड़ा, किचन वेस्ट, घास, राख इत्यादि मिश्रित हो, उसकी करीब 4 इंच मोटी परत बिछा दें। इस पर पानी डाल गीला कर दें। इसके ऊपर सड़ा हुआ अथवा सूखे गोबर खाद की 3-4 इंच मोटी परत बिछा दें।फिर इसे हल्की पानी से गीला कर करीब 1 वर्गमीटर में 100 केचुए छोड़े।इसके ऊपर पुनः पत्तियों का 2-3 इंच पतला परत देकर पूरे वर्मीबैड को सूखी घास अथवा टाट की बोरी से ढँक दे।ऐसे वर्मीबैड में पुनः कचरा डालने की आवश्यकता नहीं होती है।
इस वर्मीबैड से कुछ दूरी पर इसी तरह कचरा एकत्र करके दूसरा वर्मीबैड तैयार कर सकते हैं। करीब 40-60 दिन बाद जब पहले वर्मीबैड खाद तैयार हो जाता है, तब उसमें पानी देना बन्द कर कल्चर बॉक्स की तरह ही इसमें से धीरे-धीरे ऊपर का खाद निकाल लिया जाता है। नीचे की तह खाद जिसमें सारे केंचुए होते हैं उसे दूसरे वर्मीबैड पर डाल दिया जाता है ताकि उसमें वर्मीकम्पोस्ट की क्रिया आरम्भ हो जाये। ताजे निकाले गए वर्मीकम्पोस्ट के ढेर को भी वर्मीबैड के नजदीक ही रखा जाता है व उसमें पानी देना बन्द कर देते हैं। नमी की कमी की वजह से उसमें से केंचुए धीरे-धीरे नजदीक के वर्मीबैड में चले जाते हैं वर्मीकम्पोस्ट खेत में डालने के लिये तैयार हो जाता है। इस खाद में जो केंचुए के छोटे-छोटे अंडे व बच्चे होते हैं उनसे जमीन में प्राकृतिक रूप से केंचुओं की संख्या बढ़ती है।