Dwarka : द्वारका में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव : जगत मंदिर में द्वार खुलने के साथ भाव-विभोर होकर झूमे श्रद्धालु

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संध्या भोग के साथ दर्शन का शुरू हुआ सिलसिला

द्वारका : देवभूमि द्वारका जिले के द्वारका में गुरुवार को भगवान श्रीकृष्ण का 5250वां जन्मोत्सव भाव-भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। समग्र द्वारका नगरी कृष्णमय हो गई है। भगवान द्वारकाधीश की एक झलक के लिए श्रद्धालुओं में उत्साह देखते बनता है। कालिया ठाकोर (द्वारकाधीश) के दर्शन के लिए मंदिर प्रबंधन ने श्रद्धालुओं के लिए कतार लगवाई। ठाकोर के शृंगार के बाद भोग और केसरिया रंग के रत्नजड़ित वस्त्र से सजावट की गई। द्वारका के जगत मंदिर के अलावा आसपास के क्षेत्र की भी सुंदर रंगीन रोशनी के साथ सजावट की गई। श्रीजी की सुबह 11 बजे आरती की गई, उसके बाद ग्वाल भोग लगाया गया। दिन के 12 बजे ठाकोरजी को उनका मुख्य भोग राजभोग अर्पित किया गया।

द्वारका के जगत मंदिर में गुरुवार को दिन भर प्रभु श्रीकृष्ण की सेवा-पूजन में श्रद्धालु और भक्त दोनों लीन रहे। दोपहर आराम के बाद भगवान द्वारकाधीश को शाम 5 बजे से दर्शन के लिए खोला गया। उत्थापन भोग के बाद संध्या भोग अर्पित किया गया। संध्या भोग के दौरान मंदिर का पट बंद कर दिया गया।

भगवान को राजभोग में दाल, भात, सब्जी, रोटी, कढ़ी, कठोल, फरसाण और मिष्टान का समावेश किया जाता है। राजभोग की अलग-अलग सामग्री मिष्टान आदि शुद्ध देसी घी में बनाई जाती है। शृंगार के बाद आरती और उसके बाद ग्वाल भोग अर्पित किया जाता है। इसमें मिठाई और दूध से बनी सामग्री भगवान को अर्पित किया जाता है। आरती के वक्त सर्वप्रथम भगवान द्वारकाधीश के पास बांसुरी रखी जाती है। प्रथम शंख के साथ आरती की जाती है, इसके बाद धूप और सुगंधित पदार्थ से आरती की जाती है। आरती पूर्ण होने के बाद भगवानी द्वारकाधीश को मंत्रजाप के साथ फूल अर्पित किया जाता है। इसे पुष्पांजलि कहा जाता है। पुजारी के अनुसार द्वारकाधीश जगत मंदिर में ठाकोरजी को नित्य 11 भोग अर्पित किया जाता है। हर साल जन्माष्टमी पर्व के 11 भोग के उपरांत ठाकोर जी को 2 विशेष भोग भी अर्पित करने की परंपरा है। द्वारकाधीश मंदिर में पुजारी परिवार की महिलओं और पुरुषों के द्वारा जगत मंदिर के समीप भोग भंडार में नित्य भोग बनाया जाता है। भगवान को श्रींगार भोग दिया जाता है। इसमें ठाकोरजी को मंगला भोग, माखन मिश्री भोग, स्नान भोग, शृंगार भोग, मध्याह्न ग्वाल भोग, राजभोग और बंटा भोग मिलाकर कुल 7 भोग अर्पण करने की परंपरा है।

जन्माष्टमी को 2 विशेष भोग अर्पित किया जाता है। इसमें एक जन्म उत्सव होने के पहले महाभोग और एक भोग जन्म होने के बाद उत्सव भोग होता है। इसमें मावा की सामग्री से बने व्यंजन शामिल होते हैं। श्रद्धालुओं को चढावा वाले भोग की प्रसादी प्राप्त करने के लिए इस बार मंदिर परिसर में काउंटर पर पावती के जरिए व्यवस्था की गई है। कीर्ति स्तंभ के पास अलग से प्रसाद काउंटर भी यूपीआई पेमेंट से प्रसादी प्राप्त की जा सकती है।