हिंदी के महान आलोचक, निबंधकार, भाषाविद और इतिहासकार रामविलास शर्मा का जन्म 10 अक्टूबर, 1912 में हुआ था। उन्हें आलोचना के शिखर पुरुष के रूप में जाना जाता है। दरअसल आधुनिक हिंदी साहित्य की आलोचना में उनका नाम इतना स्थापित है कि उनके कवि रूप की उतनी चर्चा नहीं की जाती। आज उनकी जयंती पर इंडिया ग्राउंड रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहा है उनकी तीन कविताएं। पढियेगा…
चांदनी
चांदी की झीनी चादर सी
फैली है वन पर चांदनी
चांदी का झूठा पानी है
यह माह पूस की चांदनी
खेतों पर ओस-भरा कुहरा
कुहरे पर भीगी चांदनी
आँखों के बादल से आँसू
हँसती है उन पर चांदनी
दुख की दुनिया पर बुनती है
माया के सपने चांदनी
मीठी मुसकान बिछाती है
भीगी पलकों पर चांदनी
लोहे की हथकड़ियों-सा दुख
सपनों सी मीठी चांदनी
लोहे से दुख को काटे क्या
सपनों-सी मीठी चांदनी
यह चांद चुरा कर लाया है
सूरज से अपनी चांदनी
सूरज निकला अब चांद कहाँ
छिप गई लाज से चांदनी
दुख और कर्म का यह जीवन
वह चार दिनों की चांदनी
यह कर्म सूर्य की ज्योति अमर
वाह अंधकार की चांदनी
तैर रहे बादल
तैर रहे हैं
ललछौंहे आकाश में
सिंगाल मछलियों-से
सुरमई बादल
खिल उठा
अचानक
विंध्या की डाल पर
अनार-पुष्प-सा
नारंगी सूर्य
मंडराने लगी
झूमती फुनगियों पर
धूप की
असंख्य तितलियाँ
उतर रही है
उतावले डग भरती
नर्मदा घाटी में
बारिश की
चुलबुली सुबह.
अल्हड़ फुहारें
मेले के लिए
सतरंगे परिधानों से सजी-संवरी
अल्हड़ फुहारें
जोहती हैं बेकली से बाट
जाने कब जुतेंगी
निगोड़ी
ये हवाओं की बैलगाड़ियां .