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कोरोना और दिहाड़ी मजदूर

https://youtu.be/EewxNlrGXTM

यह उमड़ते हुए जनसैलाब जो आप देख रहे हैं
यह किसी मेले की तस्‍वीर नहीं है
या किसी नेता-अभिनेता का रैला भी नहीं है
यह तस्‍वीर है
साहित्‍य में वर्णित उन भारत भाग्‍यविधाताओं की
जो दिल्‍ली, मुम्‍बई, बेंगलुरु, चंडीगढ़
गुड़गांव, नोएडा, गाजियाबाद जैसे स्‍मार्ट महानगरों के निर्माता हैं।

तस्‍वीर में छोटे-छोटे बच्‍चे जो दिख रहे हैं
और उनके माथों पर भारी-भारी मोटरियां
वे उनके दुखों और संतापों की मोटरियां हैं
वही मोटरियां लेकर वे
अपने तथाकथित वतन से परदेस को आए थे
और फिर वही लेकर
परदेस से अपने वतन को लौट रहे हैं।

हजारों किलोमीटर की वतन वापसी के लिए
उनके पास न कोई हाथी है, न कोई घोड़ा है
वहां पैदल ही जाना है।

रास्‍ते में उन्‍हें सांप डंसेगा या बिच्‍छू
घडि़याल जकड़ेगा या मगरमच्‍छ
पैरों में छाले पड़ेंगे या फफोले
सूरज की आग जलाएगी या बारिश के ओले
इसकी चिंता करके भी वे क्‍या कर सकते हैं।

परदेस में उनके हाथों को जब कोई काम ही नहीं रहा
घरों से उनको बेघर ही कर दिया गया
राशन की दुकानें जब खाक ही हो गईं
तब वे करें तो क्‍या करें
जाएं तो कहां जाएं।

वे उसी वतन को लौट रहे हैं
जिनको मुक्ति की अभिलाषा में छोड़ना
उन्‍हें कतई अनैतिक-अनुचित नहीं लगा था
यह जानते हुए भी
फिर वहीं लौट रहे हैं
कि वह उनके लिए किसी नरक के द्वार से कम नहीं है
उन्‍हें पता है कि
जिनसे मुक्ति के लिए उन्‍होंने गांवों को छोड़ा था
वे उनसे इस बार कहीं ज्‍यादा कीमत वसूलेंगे
उन्‍हें उनकी मजूरी के लिए
दो सेर नहीं एक सेर अनाज देंगे
उनके जिगर के टुकड़ों को
बाल और बंधुआ मजदूर बनाएंगे
उनकी बेटियों-पत्नियों को दिनदहाड़े नोचेंगे-खसोटेंगे
शिकायत करने पर
डांर में रस्‍सा लगाकर
ट्रकों में बांधकर गांवों में घसीटेंगे

सर उठाने पर सर कलम कर देंगे
आंखें दिखाने पर आंखें फोड़ देंगे
नलों से पानी पीने पर गोली मार देंगे
गले में घड़ा और कमर में झाडूं फिर से बंधवाएंगे
जो कमोबेश अभी भी गांवों में लोगों को भुगतना पड़ता है।

भारतीय संविधान ने उनमें आजादी के जो पंख लगाए थे
वे फिर से कतरे जाएंगे
मनुष्‍य की गरिमा की अकड़ ढीली किए जाएंगे।

वे जाएं तो जाएं कहां
करें तो करें क्‍या।

अंधकार युग में उन्‍हें ही क्‍यों ढकेला जा रहा है?
और तो सवैतनिक अवकाश पर हैं
अपने-अपने घरों में सुरक्षित हैं
और वे सड़कों पर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं!

पीछे कुआं था तो आगे खाई है
उनके जीवन की यही कहानी है।

कोरोना महामारी होगी
लेकिन उनके लिए तो यह दोहरी-तिहरी महामारी है!

सारी सभ्‍यताएं नदियों और नगरों की सभ्‍यताएं हैं
पहली बार कोई नागर सभ्‍यता
उनके लिए अभिशाप बनाई गई है।

वे जाएं तो जाएं कहां
वे करें तो करें क्‍या।


संक्षिप्‍त परिचय : पंकज चौधरी

15 जुलाई, 1976 को बिहार में जन्में पंकज चौधरी की कविताएं दुर्व्यवस्था पर खुलकर प्रहार करती हैं।इनकी प्रकाशित पुस्तकें- ‘उस देश की कथा’ कविता संग्रह। ‘पिछड़ा वर्ग’ और ‘अम्‍बेडकर का न्‍याय दर्शन’ नाम से 2 वैचारिक किताबों का सम्‍पादन। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं और आलेख प्रकाशित। अंग्रेजी, मराठी, बांग्‍ला, गुजराती, मैथिली में कविताएं अनूदित। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का ‘युवा साहित्यकार सम्मान’, पटना पुस्तक मेला का ‘विद्यापति सम्मान’ और प्रलेस का ‘कवि कन्‍हैया स्‍मृति सम्‍मान’।

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