
जंग की नाकामी का डर, न मन में ऐ नादान रख
गर आसमान छूना है तो जारी अपनी उड़ान रख
राह की हर मुश्किल , पल में तमाम हो जाएंगी
बुलंद हौसलों से सजे अपने पास तीर,कमान रख
भोली सूरत और मासूम चेहरे अक्सर धोखा देते है
सीरत परखना सीख ,फितरत की तू पहचान रख
पाना और खोना तो रहमत उस परवरदिगार की
रईसी का ढ़ोल मत पीट, देने का भी अरमान रख
चापलूसों की ख़ुशामदी पर, तू बेकार में मत इतरा
खुद की कमिया गिनाने पर , थोड़ा तू इनाम रख

डॉ. कुसुम संतोष विश्वकर्मा
एम. ए., एम. फिल, पीएच – डी,
एल एल. बी., विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन