चेन्नई : पशु चिकित्सा से जुड़े शोध में यह तथ्य उभर कर सामने आया है कि अत्यधिक एंटी बायोटिक दवाओं के इस्तेमाल की वजह से मवेशी और पालतू जानवर काफी प्रभावित हुए हैं। खास तौर पर देखा गया है कि इसके कारण कुत्तों का जीवनकाल घट रहा है। इस हानिकारक प्रभाव को देखते हुए पशु चिकित्सक प्राकृतिक और कम लागत वाली प्रभावशाली उपचार विधि तलाशने में जुटे हैं।
केनाइन साइंटिस्ट के अनुसार हाल के वर्षों में कुत्तों का जीवनकाल कम हो गया है। इसका एक कारण एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक इस्तेमाल है। दुनियाभर में पशु चिकित्सा पेशेवर इन हानिकारक परिणामों का मुकाबला करने के लिए चिकित्सा के वैकल्पिक क्षेत्रों की उपचार विधि की खोज कर रहे हैं। इसी सिलसिले में केरल सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (मिल्मा) ने मवेशियों में बुखार, दस्त, त्वचा रोग, पिस्सू और अपच सहित विभिन्न बीमारियों के समाधान के लिए आयुर्वेदिक पशु चिकित्सा दवाओं की एक श्रृंखला शुरू की।
हाल ही में पुडुचेरी स्थित केवीएम रिसर्च लैब्स ने आयुर्वेदिक पशु चिकित्सा उत्पादों को बढ़ावा देने और आयुर्वेदिक पशु चिकित्सा के महत्व को रेखांकित करने के लिए अन्य अनुसंधान संस्थानों और किसानों के सहयोग से अनुसंधान करने के लिए अपना ‘मृग आयुर्वेद’ डिवीजन लॉन्च किया। केवीएम 1988 से आयुर्वेदिक उत्पादों के निर्माण और निर्यात के व्यवसाय में है।
पुडुचेरी में राजीव गांधी पशु चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान संस्थान में सेवानिवृत्त प्रोफेसर (माइक्रोबायोलॉजी) डॉक्टर एंटनी प्रभाकर ने बताया कि एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध ने मवेशियों और पालतू जानवरों को प्रभावित किया है। एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग के कारण पिछले कुछ वर्षों में कुत्तों का जीवनकाल कम हो गया है। उनका कहना है कि 80% से अधिक डेयरी किसान महंगे पारंपरिक उपचार का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड भी दूध में एंटीबायोटिक्स के अवशेषों को कम करने के लिए आयुर्वेद पर आधारित पशु चिकित्सा को बढ़ावा दे रहा है।
तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ( डॉक्टर) एन वेंगडाबडी का कहना है कि आयुर्वेदिक दवाओं के संबंध में प्रभावी समाधान तक पहुंचने के लिए अनुसंधान संस्थानों के साथ-साथ किसानों के सहयोग से अधिक शोध और सामयिक परीक्षणों की आवश्यकता है। केवीएम रिसर्च लैब्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉक्टर सुश्रुत बाधे ने कहा कि आयुर्वेदिक पशु चिकित्सा की उत्पत्ति चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों से मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस प्राचीन प्रथा को हाल ही में सरकार द्वारा मुख्य रूप से आयुष, पशुपालन और राष्ट्रीय डेयरी बोर्ड विभागों के माध्यम से बढ़ावा दिया जा रहा है।
संयुक्त निदेशक (पशुपालन) डॉक्टर के कुमाराने ने कहा कि एलोपैथिक चिकित्सा से पहले मवेशियों में बीमारियों के इलाज के लिए पारंपरिक चिकित्सा ही एकमात्र प्रभावी तरीका था। अब भी, गांवों में अधिकांश लोग पाचन समस्याओं, आंतों के कीड़े और श्वसन पथ के संक्रमण जैसी मवेशियों की बीमारियों के इलाज के लिए पारंपरिक तरीकों का सहारा लेते हैं। हालाँकि, आयुर्वेदिक पशु चिकित्सा में कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है। इसलिए यह अच्छा है कि अब इस क्षेत्र में रुचि है।