Auraiya: खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी…

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शहादत दिवस पर याद की गयीं वीरांगना

औरैया:(Auraiya) जून एक ऐसी क्रान्ति ज्वाला का शहादत दिवस है जिसकी तलवार की धार और ललकार से प्रथम स्वाधीनता संग्राम में ब्रिटिश सेना के छक्के छूट गये थे। कई युद्ध के मोर्चाें पर अंग्रेजों को पराजित कर उनकी लाशों की कतार लगा दी थी। भारत प्रेरणा मंच औरैया उस महान वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मी वाई को नमन करते हुए अश्रुपूरित श्रृंदाजलि अर्पित किया है।

स्वतंत्रता की जगमगाती दीपशिखा शौर्य की सजीव प्रतिमा महारानी लक्ष्मीबाई केवल भारत की नहीं वरन संसार की उन वीरांगनाओं में से एक हैं जिनकी गिनती अंगुलियों पर की जा सकती है। लक्ष्मी नाम है उसका जिसने जनमानस में नारी के प्रति स्थापित कल्पना को परिवार्तित कर उसे अबला के स्थान पर सवला, कोमलांगी के स्थान पर वज्रांगना और रमणी के स्थान पर रणचंडी के रूप मे प्रस्थापित किया।

जब 18 जून 1858 को रानी भीषड़ युद्ध में अंग्रेजो और उनकी सेना का विनास करती हुई गम्भीर रूप से घायल हो गयीं तो उनके सेना नायक गुल मोहम्मद, बाबा गंगादास की कुटिया में ले गये। रानी का शरीर खून से लथपथ था और अचेत अवस्था में थीं। बाबा गंगादास ने रानी के मुख में गंगा जल डाला तो थोड़ी चेतना आयी और उनके मुख से हर हर महादेव निकला और फिर अचेत हो गयीं। थोड़ी देर वाद बाबा ने फिर गंगाजल मुख में डाला तो एक बार शरीर में फिर सिहरन हुई और मुख से ॐ वासुदेवाय नमः निकला। इसी स्वर के साथ वीरता का सूर्य अस्त हो गया। जो जीवन ज्योति 19 नवम्बर 1835 को ज्योतित हुई थी वह 18 जून 1858 को बुझ गई। बुन्देले हर बोलों के मूंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी…। रानी लक्ष्मी बाई ग्वालियर में 18 जून 1858 को ब्रिटिश सेना से युद्ध करते हुए रानी लक्ष्मी बाई वीरगति को प्राप्त हुई थीं।