Ajmer : “ऐसी पढ़ाई भी क्या काम की, जिससे परिवार ही टूट जाए?”

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हाईकोर्ट के न्यायाधीश मनोज गर्ग का लिव-इन रिलेशन पर समाज को सचेत करने वाला वक्तव्य
अजमेर : (Ajmer)
(“What is the use of such education, which breaks up the family?”)राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर के न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग (Judge Manoj Kumar Garg of Rajasthan High Court Jodhpur) ने लिव-इन रिलेशनशिप जैसे सामाजिक मुद्दे पर खुलकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि बिना विवाह के युवक-युवतियों का साथ रहना भारतीय पारिवारिक व्यवस्था के लिए गहन चिंता का विषय बनता जा रहा है।

न्यायाधीश गर्ग ने यह विचार अजमेर प्रवास के दौरान अग्रवाल समाज द्वारा आयोजित अभिनंदन समारोह में (elicitation ceremony organized by the Agrawal Samaj) व्यक्त किए। उन्होंने मंच से स्पष्ट कहा कि हर दिन जोधपुर बेंच में लगभग 15 मामले ऐसे आते हैं, जिनमें युवक-युवती बिना विवाह साथ रहने की जानकारी देते हुए अपने ही परिजनों से सुरक्षा की गुहार लगाते हैं।

न्यायमूर्ति गर्ग ने कहा, “यह सोचने का विषय है कि आखिर आज का युवा वर्ग विवाह के पवित्र बंधन से पहले ही साथ क्यों रहना चाहता है? यह हमारे पारिवारिक ताने-बाने को कमजोर कर रहा है।” उन्होंने इस प्रवृत्ति का एक बड़ा कारण उच्च शिक्षा और शहरी जीवन की दौड़ को माना। अक्सर माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और करियर के लिए बड़े शहरों में भेजते हैं। दसवीं-बारहवीं के बाद ही बच्चे घर से दूर हो जाते हैं, और वहीं से स्वतंत्र जीवन और संबंधों की नई अवधारणाएं जन्म लेने लगती हैं। न्यायाधीश गर्ग ने कहा, “पढ़ाई जरूरी है, लेकिन ऐसी पढ़ाई किस काम की जिससे बच्चे परिवार की मर्यादा, रिश्तों की गरिमा और सामाजिक मूल्यों को ही भूल जाएं?” उन्होंने यह भी जोड़ा कि अब लड़कियों की शादी 28-30 की उम्र में हो रही है— और वही हाल लड़कों का भी है। देर से विवाह होने पर वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बिठा पाना भी कठिन हो जाता है।

आज की वास्तविकता यह है कि माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता बच्चों के वैवाहिक जीवन में आ रहे तनाव और टूटते रिश्ते हैं। और जब युवक-युवतियां लिव-इन रिलेशन जैसे विकल्पों के लिए अदालत का सहारा लेने लगें, तो यह पारंपरिक भारतीय समाज के लिए गहरे आत्ममंथन का विषय है।