रोजाना एक कविता

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उपेंद्रनाथ की कविताएं

रोटी

रोटी सिर्फ रोटी नहीं
तपन सपनो की
मिठास प्यार की
कारीगरी हाथो की
उम्मीद ख्वाबो की
और स्वाद तानो का
सच कितना कुछ है
माँ तुम्हारी इस रोटी में।

नाम

जिंदगी मेरी
एक खुली किताब थी
हर कोई लिख गया
इसे अपने हिसाब से
मुश्किल ये कि
मैं इसे अब
क्या नाम दू।।

याद

उन्होंने कहा
कि भूल जाओ मुझे
इसके अलावा
अब कोई भी
रास्ता नही बचा है
मैंने कहा
मेरे पास
अब भी बचा है
एक रास्ता
तुम जाओ
मगर छोड़ जाओ
अपनी यादे।।

रेत

जबसे रेत पर मैंने
तुम्हारा नाम लिखा है
तुमने छोड़ दिया है
लहर बनकर
किनारे तक आना ।।

गौरैया

मेरी छत की
मुंडेर पर
आती होगी शायद
अब भी गौरैया
करने को
दो- चार बातें मुझसे
मुझे उलाहना देते हुये
कि तुम बदल गये
बेचारी वापस
लौट जाती होगी
देख मुझे
मोबाईल पर
चैटिंग करते हुए।।

हत्या

नयी- नवेली दुल्हन को
मिला नया फरमान
लिखना बंद कर दो कविता
और चूल्हे- चौके में दो ध्यान
उसके अंदर की कविता
जैसे जैसे मर रही है
वह भी मरती जा रही है।।

लोकतंत्र

लोकतंत्र ने पूछा
इसबार किसपर
लगाओगे मुहर
मतदाता मुस्कराता है
महँगी होगी जिसकी शराब
लोकतंत्र बेचारा
फिर हो जाता है उदास।।

कफ़न

मेरे हाथों से
कफ़न का कपडा
वह छीनकर भागा
पता चला
उसकी बूढ़ी माँ
कई दिनों से
इस कंपकपाती ठण्ड में
बिन चादर के रात भर
सो नहीं प़ा रही थी।।