
कभी यूँ हो
धरती पर मुरझाए पड़े सारे फूल
फिर से पेड़ पर लग जाएँ
समंदर का खारा पानी
उल्टा बह कर नदी बन जाएँ
फिर से मीठा हो जाएँ
पलकों पर तैरते कतरें
ख़ुशी में तब्दील हो जाएँ
आँखों में समा जाएँ
हम बुढ़ापा से जवानी और
जवानी से बचपन की और लौटें
फिर से निश्छल हो जाएँ
काश कभी यूँ भी हो
तुम लौट आओ कभी न जाने के लिए
और फिर से हम एक हो जाएँ