रोजाना एक कविता : आज पढ़ें आनंद ‘सहर’ की कविता ‘बासंती मन’

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जाती हुई सर्दियां, बड़े होते दिन, गुनगुनी धूप धीरे-धीरे तेज होती हुई, काव्य प्रेमियों को हमेशा आकर्षित करती रही हैं। यह ऋतुराज बसंत का आगमन है। यह मौसम हमेशा से भारतीय कवियों/शायरों और गीतकारों को आकर्षित करता रहा है। पेश है बसंत के आगमन पर आनंद ‘सहर’ की कविता ‘बासंती मन’…

basant panchami poem
basant panchami poem

देह हल्दिया बासंती मन, आँखों में अनुबंध लिए
मेरे गीतों में उतरा है, कोई फागुनी छंद लिए
उसका मौन समर्पण
जिस पर आँखों के हस्ताक्षर थे,
फिर यह कौन चला आया है
साँसों पर प्रतिबंध लिए.
पावन रिश्तों की सार्थकता
स्वयं सिद्ध हो जाती है
यदि मन आत्मसमर्पण कर दे
साँसों की सौगंध लिए
अभिभूत हो गई पूर्णिमा
चंदा का आलिंगन पाकर
और सुवासित हुई चाँदनी
प्रेम पगे संबंध लिए
जिस पानी ने भँवर बनाए
बहा वही धारा बन कर
और समाहित हुआ जलधि में
अनुशासित संबंध लिए
देह हल्दिया बासंती मन, आँखों में अनुबंध लिए
मेरे गीतों में उतरा है, कोई फागुनी छंद लिए