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रोजाना एक कविता : आज पढ़े सारंग उपाध्याय की कविता उजाले की दिशा..

A poem a day:

चलने का अर्थ
बिल्कुल नहीं होता
कहीं पहुंचना
यात्राएं
खत्म होने के लिए नहीं होतीं..!

प्रेरणा का अर्थ
कभी नहीं रहा मंजिलों पर पहुंचना
उत्साह का मतलब खुशी था
मिशन पर होना नहीं
या मिशन बन जाना नहीं..

यायावर की सृष्टियां
ठिठकीं, ठहरीं
और विश्राम में रहीं..!

लक्ष्य
भटकने के लिए नहीं रहे
दिग्भ्रमित होने के लिए नहीं बताई थी मल्लाह ने दिशा..!

जरूरी होता है
अक्सर
दिशा भूलना
दिशाओं को जानने के लिए
क्योंकि
दिशा भटकना ही
सही दिशा को प्राप्त होना होता है..!

कौन था वह
जो आधी रात को
गुजरा
ध्यान के गीत गाते
अनंत को गुनगुनाते
अंधियारे से
उजाले की ओर

जो
किसी होड़ में नहीं था
स्पर्धाओं से बाहर
दीर्घाओं में भी नहीं था
ना पहुंचना था उसे कहीं
ना जाना
उस दिन
रौशनी के नगर में थे
गमन के पद्चिह्न
हवा में घुलती रही
अस्तित्व की गंध
गोधूलि में अभंग
लौटती ध्वनि में गूंजते रहे
अनंत के गीत..!

मेरी धारा
अनंत दिशा
प्रकृति..!

हम नदी हैं
मंथर लेकिन स्थिर
बहती मध्यांतर में
उर्वरा होने के लिए
अनंत काल में प्रवाहित होने के लिए..!

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