
किसी की नींद में मैं हूँ
किसी के जागरण में हूँ
किसी की चिर प्रतीक्षा में
किसी की चिर शरण में हूँ।
किसी का हाथ थामा तो
हथेली खिल गयी अपनी
किसी ने अश्रु पोंछे तो
व्यथा सब बह गयी अपनी
अँधेरी रात में भी दीप
जलता है प्रतीक्षा का,
किसी का पुण्यफल हूँ मैं,
किसी अंत:करण में हॅूं।
किसी के साथ जीना था
किसी के साथ मरना था
मगर हर हाल में दुस्सह
नियति का वरण करना था
अधूरी राह में ही पर
विदा का हाथ लहराया
तभी से इस भुवन में
मैं अकेला चिरभ्रमण में हूँ।
मिले यदि जन्म फिर कोई
समुद्गम फिर यहीं पर हो
यहीं गंगो – जमन की
पुण्यभू पर अवतरण फिर हो
धरा यह नित सँवरती है
समुज्ज्वल संस्कारों से
किसी पुस्तक-सरीखे
नित नवेले संस्करण में हूँ।
कहाँ जाना कहां रुकना
कभी सोचा नहीं मैंने
समय के भाल पर थक
कर रखा काँधा नहीं मैंने
किसी प्रारब्ध की सरिता में
बहना था नहीं मुमकिन
अत: मैं धार के विपरीत
नौका – संतरण में हूँ ।
किसी की चिर प्रतीक्षा में
किसी की चिर शरण में हूँ।