
कामना का यह अंतिम प्रहर
प्रेम की यह आखिरी तड़प
और एक साथ इतनी बिजालियों का गिरना
अब आग नहीं
आंच की खुमारी है
स्याह पर्दे पर
फुसफुसाहट की इबारत में
लिखता है वह एक पुरातन पुरुष प्रश्न :
कैसा लगा?
कि जैसे टूटता है जादू
अचानक कम होने लगता है
कमरे का तापमान
सिहरते हुए वह
चादर सिर तक खींचती हुई
पूछना चाहती है
तुम प्रेम कर रहे थे
या परीक्षा दे रहे थे
समर्पण में विभोर थे
या अवरुद्ध थे तनाव में
लेकिन वह कुछ नहीं कहती
और वह उसके मौन को
अपनी तरह से
बूझता रहता है