Kolkata : चुनाव आयोग के एसआईआर नीति को महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

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कोलकाता : (Kolkata) पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर से तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) (TMC) की लाेकसभा सांसद महुआ मोइत्रा (Lok Sabha MP from Krishnanagar, West Bengal, Mahua Moitra) ने चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) (SIR) के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने इसे असंवैधानिक करार देते हुए न केवल इस आदेश को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की मांग की, बल्कि यह भी आग्रह किया कि बंगाल समेत देश के अन्य किसी राज्य में इस तरह की नीति लागू न की जाए।

टीएमसी सांसद का तर्क है कि जो नागरिक पहले से मतदाता सूची में पंजीकृत हैं और वर्षो से मतदान करते आ रहे हैं, उनसे एक बार फिर नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज मांगना सरासर गलत है। यह न केवल उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि संविधान की मूल भावना के भी खिलाफ है।

याचिका में महुआ ने चुनाव आयोग (Election Commission) के आदेश को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1), 21, 325 और 326, साथ ही जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और मतदाता पंजीकरण नियमों के विरुद्ध बताया है। उनका कहना है कि अगर यह निर्देश लागू रहा, तो लाखों लोग विशेषकर गरीब, वंचित और हाशिये पर बसे समुदायों से आने वाले नागरिक अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। चुनाव आयोग द्वारा 24 जून, 2025 को जारी निर्देश के अनुसार, बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव (assembly elections in Bihar) से पहले मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया की जाएगी। इसके तहत नागरिकों को आधार कार्ड या राशन कार्ड जैसे दस्तावेज नहीं, बल्कि जन्म प्रमाण पत्र या माता-पिता की नागरिकता का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा।

निर्देश के अनुसार, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में था, उन्हें दस्तावेज दिखाने की जरूरत नहीं है। लेकिन 1987 से पहले जन्मे लोगों को अपना जन्म प्रमाणपत्र देना अनिवार्य है, 1987 से 2004 के बीच जन्म लेने वालों को स्वयं या अपने माता-पिता में से किसी एक का प्रमाण देना होगा और 2004 के बाद जन्मे व्यक्तियों को स्वयं के साथ-साथ माता और पिता, दोनों के प्रमाण प्रस्तुत करने होंगे।

इस निर्णय को लेकर देश भर में आलोचना हो रही है। कई सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों का कहना है कि यह कदम लोकतंत्र के लिए खतरा है। विशेषकर दलित, आदिवासी, प्रवासी मजदूरों और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों के लिए आवश्यक दस्तावेज जुटा पाना कठिन होगा, जिससे वे मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं।

महुआ मोइत्रा ने अपने सोशल मीडिया पर याचिका की जानकारी साझा करते हुए लिखा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से इस नीति को निलंबित करने की मांग की है, ताकि बंगाल सहित अन्य राज्यों में इसे लागू होने से रोका जा सके।

इस निर्देश के खिलाफ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स समेत (Association for Democratic Reforms) (ADR) कई अन्य याचिकाएं भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की जा चुकी हैं। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भी कानूनी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं। उधर, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार (Chief Election Commissioner Gyanesh Kumar) ने बयान जारी कर कहा है कि सभी की सहयोग और पारदर्शिता के साथ, निर्धारित समय के भीतर यह संशोधन कार्य पूरा किया जाएगा।