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Mumbai : बेटियों को पिता की सेवा करने से रोका नहीं जा सकता : हाईकोर्ट

मुंबई : (Mumbai) बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने तीन बेटियों को 70 वर्षीय बीमार पिता से मिलने और उनकी देखरेख करने की छूट दी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि पिता को मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत हो, तो उन्हें इससे वंचित न किया जाए। बेटियों को पिता का ख्याल रखने की पूरी आजादी होगी। सौतेली मां के रुखे व्यवहार से तंग बेटियों ने एडवोकेट वीके दुबे (Advocate VK Dubey) द्वारा याचिका दायर की और सुनवाई पर कोर्ट ने यह आदेश दिया है।

एडवोकेट वीके दुबे ने दायर की याचिका

बेटियों ने दावा किया था कि सौतेली मां ने उनके पिता को अवैध रूप से बंधक बना रखा है। मां न तो खुद पिता का ठीक से ख्याल रख रही हैं, न ही हमें उनका ध्यान रखने दे रही हैं। तीन में से दो डॉक्टर बेटियों ने याचिका में कहा था कि है कि वे खुद पिता को अपने पास रखना चाहती हैं, लेकिन मां की बेरुखी के चलते वे ऐसा नहीं कर पा रही हैं। सौतेली मां बेवजह पिता से हमारे (बेटियों) नाम से झगड़ती है। मां न तो खुद पिता की देखरेख कर रही हैं और न ही अस्पताल में इलाज करा रही है, उनका इरादा समझ से परे है। बेटियों के ऐडवोकेट वी.के दुबे द्वारा दायर याचिका के मुताबिक, कुछ दिनों पहले पिता ब्रेन स्ट्रोक का शिकार हुए थे, अतः बेटियों के पिताजी की कस्टडी जल्द से जल्द मिले और मेडिकल की अच्छी सुविधाए दी जा सके इसलिए माननीय हाई कोर्ट में याचिका दायर की। कमजोर स्वास्थ्य स्थिति के कारण मालाड इलाके (Malad area) में रह रहे पिता को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन मां ने उनकी जबरन छुट्टी कराई है। हम (बेटियां) पिता को अपने पास रखकर ठीक से उनका इलाज करा सकती हैं और उनकी देखरेख कर सकती हैं। याचिका में बेटियों ने दावा किया था कि मां का पिता के प्रति व्यवहार अच्छा नहीं है। मां के कारण पिता को अलग घर में रहने को मजबूर होना पड़ा है। बेटियों को पिता से मिलने के हक़ से वंचित नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट का फैसला

जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे (Justice Bharti Dangre and Justice Manjusha Deshpande) की बेंच ने डिस्चार्ज कार्ड में याचिकाकर्ताओं (बेटियों) के पिता में सुधार होने की बात लिखी है। याचिकाकर्ताओं के पिता जिस महिला के साथ रह रहे हैं। उनसे उन्होंने विवाह किया है। वह 2004 से उनके साथ रह रहे हैं। इस तथ्य का याचिका में उल्लेख किया गया है। इसीलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं के पिता को उनकी मां ने अवैध हिरासत में रखा है। यह टिप्पणी करते हुए बेंच ने हैबियस कॉर्पस पेटिशन पर सुनवाई करते हुए बेटियों को पिता से मिलने की इजाजत दी।

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