
यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न मांगो
अपने ही गले के लिये तलवार न मांगो
गिर जाओगे तुम अपने मसीहा की नज़र से
मर कर भी इलाज-ए-दिल-ए-बीमार न मांगो
खुल जायेगा इस तरह निगाहों का भरम भी
कांटों से कभी फूल की महकार न मांगो
सच बात पे मिलता है सदा ज़हर का प्याला
जीना है तो फिर जीने के इज़हार न मांगो
उस चीज़ का क्या ज़िक्र जो मुम्किन ही नहीं है
सहरा में कभी साया-ए-दीवार ना मांगो
क़तील शिफ़ाई
मशहूर ग़ज़लकार।