हाईकोर्ट ने दो वर्ष की बेटी की अभिरक्षा मां को सौंपी
कहा, मुस्लिम कानून में भी 7 वर्ष से कम उम्र के बच्चे की अभिरक्षा का मां को है अधिकार
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका अवैध या अनुचित अभिरक्षा से तत्काल मुक्ति दिलाकर उसकी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने की विशेषाधिकार प्रक्रिया है। कोर्ट ने कहा किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किसी नाबालिग को अभिरक्षा में रखना, जिसका उसे कानूनी हक नहीं है, तो बच्चे की अवैध अभिरक्षा मानी जाएगी।
कोर्ट ने कहा मुस्लिम ला में भी मां को सात साल से कम आयु के बच्चे की अभिरक्षा पाने का अधिकार है, और इसी के साथ कोर्ट ने दादी के पास रह रहे बच्चे की अभिरक्षा उसकी मां को सौंप दी।
यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ वाई के श्रीवास्तव ने प्रयागराज की निवासी याची संख्या दो मां की तरफ से दाखिल आयरा खान की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।
याची संख्या दो ने शौहर से विवाद होने पर 8 सितम्बर 23 को घर छोड़ दिया था। उस समय उसकी बेटी याची संख्या एक आयरा दो वर्ष की थी। बच्ची को दादी की अभिरक्षा में सौंप कर उसका पिता (याची संख्या दो का शौहर) विदेश चला गया। दादी की अवैध निरुद्धि से मुक्ति दिलाने के लिए बच्ची की मां की तरफ से यह याचिका दायर की गई और बच्ची की अभिरक्षा की मांग की गई। बच्ची को अदालत में पेश किया गया। कोर्ट के आदेश पर बच्ची याची संख्या एक की अभिरक्षा उसकी मां को सौंप दी गई।
कोर्ट ने मुस्लिम कानून व बच्चे की अभिरक्षा के अधिकार पर विचार करते हुए कहा कि जिसे बच्चे की अभिरक्षा का वैधानिक अधिकार नहीं है और वह बच्चे को अभिरक्षा में रखता है तो यह अवैध निरूद्धि मानी जायेगी।
कोर्ट ने कहा है कि बच्चे की संरक्षक या अभिरक्षा अथवा उससे मिलने देने के अधिकार के लिए पक्षकार कानून के तहत उचित अनुतोष की कार्यवाही कर सकते हैं।