एक पुत्र का अपनी मां को लिखा पत्र

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दुनिया है तेरे आंचल में

प्यारी मां,
मेरे सुखों के लिए तुमने कभी अपने सुखों की परवाह नहीं की। हमेशा ही मुझे ख़ास महसूस कराया। मैं आज जो कुछ भी हूं। उस सबके पीछे तुम्हारी अनंत तपस्या दुनियादारी के गरम थपेड़े, तुमसे टकराते थे, लेकिन तुमने उन्हें मुझ तक कभी पहुंचने नहीं दिया। तुम्हारे दर्द और पसीने से मेरी मुस्कुराहट सींची हुई है। मेरी हर मुस्कुराहट के पीछे तुम्हारे हजारों दर्द हैं। तुम्हारे ही पुण्यों से मैं जीवन में सुख पा रहा हूं।

मेरा मेरे पास है ही क्या? सब कुछ तुम्हारा ही तो दिया हुआ है। यह मेरा शरीर, विचार व व्यवहार सब तुम्हारा ही है। मुझे आज भी याद है । मुझे मेरे मन की ख़ुशी देने के लिए तुम्हारा बेचैन हो जाना। कभी-कभी दुनिया के ताने, मेरी उमंगों को मार देते थे। तब तुम कितना छटपटाती थीं। मुझे याद है। जब बचपन ही में मुझे हॉस्टल जाना पड़ा था। मैं वहां तड़पता था। बिलख-बिलखकर तुम्हारी याद में रोता था। तब तुम भी उतनी ही, घुटन महसूस करती थी, जितनी मैं करता था।

एक समय जब मैं बहुत मुसीबतों में था। पूरी तरह टूट चुका था। मन करता था, जीवन ही समाप्त कर लूं। तब तुमने मेरा सिर अपनी गोद में रख लिया था और मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरा था। एक आंसू मेरी पलकों तक आकर रुक गया था। तब मैंने देखा था। वैसा ही एक मोती तुम्हारी आंखों में भी था। आज जब तुम कभी अचानक से बिस्तर पर लेट जाती हो और आंखें बंद कर लेती हो। तो मैं जान जाता हूं कि तुम्हें जोड़ों में, पीठ में भयानक दर्द हो रहा है। तुम कुछ भी नहीं कहती हो, लेकिन मैं चाहता हूं तुम कुछ कहो। क्यों ना यह सारा दर्द मुझे मिल जाए? क्यों यह दर्द हम दोनों साझा नहीं कर सकते। यह सिर्फ़ तुम्हारे ही हिस्से में क्यों है? कई बार सोचता हूं। असल में यह दर्द सब मेरे हिस्से का है, लेकिन इसको तुमने अपने ऊपर लिया हुआ है। कुछ भी हो मां अब मौक़ा मेरा है। तुम्हें कुछ देने का, दर्द को मुस्कुराहट में बदलने का। जो कुछ तुमसे लिया है। उसे लौटाने का।

तुम्हारा बेटा
संचित त्यागी