
एक अनाम रास्ते पर चलते हुए आभास हुआ किस यात्रा में चल रहा हूँ
नेत्रों ने आकाश का नील सोख लिया है देह के भीतर सबकुछ आसमानी होने से पहले किस रंग का था मुझे ध्यान नहीं
परिचित हाथों के आघात से हृदय प्रेम के समंदर में भीतर ही भीतर घायल पनडुब्बी-सा डूबता चला गया
मुझे भविष्य में मेरे ही क्षत-विक्षत अवशेष दिखाई देते हैं जिन्हें समेटने और सहेजने के लिए कोई अपना नहीं जो बाट जोह रहा हो
शोक जताने के लिए भी निरर्थक कार्यों से अवकाश लेना पड़ा मुझे पंक्तिबद्ध होकर
अपने पुराने अवसाद को नए अवसाद में धकेलकर
आगे निकल गया मैं सिद्धहस्त हुआ किंतु अनैतिक कार्य में
• सूरज सरस्वती शाण्डिल्य