India Ground Report

पीड़ाओं का अलंकरण

एक अनाम रास्ते पर चलते हुए आभास हुआ किस यात्रा में चल रहा हूँ

नेत्रों ने आकाश का नील सोख लिया है देह के भीतर सबकुछ आसमानी होने से पहले किस रंग का था मुझे ध्यान नहीं

परिचित हाथों के आघात से हृदय प्रेम के समंदर में भीतर ही भीतर घायल पनडुब्बी-सा डूबता चला गया

मुझे भविष्य में मेरे ही क्षत-विक्षत अवशेष दिखाई देते हैं जिन्हें समेटने और सहेजने के लिए कोई अपना नहीं जो बाट जोह रहा हो

शोक जताने के लिए भी निरर्थक कार्यों से अवकाश लेना पड़ा मुझे पंक्तिबद्ध होकर

अपने पुराने अवसाद को नए अवसाद में धकेलकर

आगे निकल गया मैं सिद्धहस्त हुआ किंतु अनैतिक कार्य में

• सूरज सरस्वती शाण्डिल्य

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