
बात उन दिनों की है, जब मेरी नई-नई नौकरी लगी थी। मैं घर से नाश्ता करके निकल जाती और चाय हमेशा बस से उतरकर एक चाय वाले के यहां पीती। देखने से ही लगता था कि उसने नई-सी दुकान खोली है। शायद गरीबी के चलते, पर लड़का चाय बहुत अच्छी बनाता था। मेरी उम्र से तो वह छोटा था, पर मैं हमेशा उससे विष्णु भैया ही कह कर बुलाती और वह मुझे दीदी। मैं रोज 5रूपए की कटिंग चाय पीती।
मुझे लगता था, इस बहाने मैं उसकी मदद भी कर रही हूं। मुझे चाय के साथ-साथ आसपास की ताजा तरीन खबरें भी परोस देते थे विष्णु भैया। यह सिलसिला रोज ही चलता। एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति भी लगभग रोज मेरे समय पर ही चाय पीते। वे फुल 8 रूपए वाली चाय पीते। मैंने गौर किया कि वे बड़े इत्मीनान से चाय पीते। कुछ सोचते, फिर पीते। कई बार मैं और वे साथ में पैसे देने पहुंचते। हल्की-सी मुस्कुराहट के साथ वे मुझे देखते, फिर हम अपने-अपने रास्ते चल पड़ते।
इस बीच में कई बार मैंने नोटिस किया कि वह व्यक्ति 8रूपए की जगह 30 रूपए देते। कभी ध्यान दिया कभी अनदेखा किया। पर एक दिन मौका पाकर मैंने भैया से पूछ लिया यह व्यक्ति आपको 30 रूपए क्यों देते हैं, कुछ उधार बाकी है क्या? उन्होंने कहा नहीं दीदी बिल्कुल नहीं, वे तो जमा करते हैं।
मैंने पूछा जमा करते हैं..! मतलब? क्या बताऊं दीदी 8रुपए की चाय पीकर वे एक टाइम के खाने का पैसा यहां जमा कर देते हैं, रोज खाने की जगह चाय पीकर अपनी भूख खत्म कर देते हैं। मैंने कई बार बिस्कुट खिलाने का प्रयास किया पर वे नहीं माने। इतने शब्द ही सुने थे कि दिल दर्द से भर गया और शरीर कांप गया। कान के रास्ते दाखिल शब्दों से मेरा दिल टूट गया और मुझे अदंर तक झकझोर दिया।
भैया बोले वे अपने परिवार को तो यही बताते हैं कि 30 रूपए वाली थाली खाते हैं। पर वास्तव में पूरा दिन एक कप चाय के सहारे निकाल लेते हैं। शाम को घर पहुंच कर ही खाना खाते हैं। मेरे पास रुपए जमा करके महीने के आखिरी में घर खर्च में रुपए जोड़ कर दे देते हैं। भइया कुछ पल के लिए दार्शनिक से हो गए। उन्होंने कहा दीदी गरीबी और जिम्मेदारी जाने क्या-क्या करा लेती है एक इंसान से।
मेरा सिर शर्म से झुक गया, मैं तो 5 रूपए वाली चाय पीकर महान बन रही थी, पर नतमस्तक हुआ उस व्यक्ति के लिए, जो परिवार के लिए अपनी भूख खत्म कर देता है। कितनी सहनशक्ति दी है भगवान ने उनको। तब मुझे उसे एक कप चाय की कीमत समझ में आई। अब जब कहीं किसी टपरी पर अनजान गरीब को चाय पीते देखती हूं, तो वे याद आ जाते हैं। सोचती हूं जाने कितनी जिम्मेदारियों को निभा रहा थे वो। हम तो शायद चाय को गिले शिकवे मिटाने, यार, प्यार या रिश्ते बनाने तक सीमित रख पाए वह व्यक्ति अपनी भूख मिटा कर अपने पूरे परिवार को संभाले हुए था।
मीनाक्षी