
बात उस समय की है कि जब देश का विभाजन हुआ था और चारों ओर सांप्रदायिकता की आग जल रही थी। पुलिस और सेना की मौजूदगी में भी शांति कायम नहीं हो रही थीं। इन्हीं दिनों सांप्रदायिक सद्भाव के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अनशन शुरू किया और एक सौ इक्कीस घंटे बिना आहार के रहे। जब उनका अनशन तुड़वाया गया तो वे काफी कमजोर हो गए थे।
कमजोर होने पर भी अनशन तोड़ने के तुरन्त बाद वे चरखा चलाकर सूत कातने लगे। डाक्टरों ने इसके लिए मना किया तो वे धीमे स्वर में बोलेः ‘बिना मेहनत के प्राप्त की गई रोटी वास्तव में चोरी की होती है। अब मैंने भोजन करना शुरू कर दिया है तो मुझे श्रम भी करना चाहिए।’