
विवेकानंद अमेरिका से लौटे थे। एक व्यक्ति उनके पास आया और कहने लगाः शास्त्रों में कुछ भी नहीं है। शब्दों में क्या धरा है? विवेकानंद ने उस व्यक्ति से कहाः मूर्ख! तुम बैठ जाओ। वह व्यक्ति क्रोध में आ गया। उसने विवेकानंद से कहाः आप संन्यासी हो कर ऐसा बोलते हैं? आपने यह क्या किया?
आप ने मुझे गाली दे दी। विवेकानंद ने कहाः अभी तो तुम कह रहे थे कि शब्दों में क्या धरा है, और अब तुम कह रहे हो कि तुम्हें गाली दे दी। उस व्यक्ति को शब्द शक्ति का अहसास हो गया था। उसने विवेकानंद से क्षमा याचना की। बाद में वह रामकृष्ण मिशन का महत्वपूर्ण संन्यासी बना।