
इन पत्रों में पत्र संख्या 1, 2, 4, 5 तथा 8-9 विवाह के पूर्व लिखे गए थे। विभूतिभूषण का पहला विवाह गौरी देवी के साथ हुआ था। दूसरा विवाह रमा देवी के साथ हुआ। रमादेवी 1997 ई. तक जीवित रहीं। विभूतिभूषण की मृत्यु (1950 ई.) के बाद 47 वर्षों तक उन्होंने विभूतिभूषण पर वो पुस्तकें लिखी है।
तब मैं भूत की वस्तु बन जाऊंगा
कल्याणीयासु,
आज ही तुम्हारा पत्र मिला एवं तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा है जानकर आनंद हुआ। तुम्हारी नाराजगी को मैं कोई महत्व नहीं देता, क्या ऐसा है कल्याणी? तुम्हारी नाराजगी के डर से कितनी बार तुमने जो कहा है वही चुपचाप सुना है। फिर उस दिन वह मामला था, इसलिए तुम्हारे आग्रहपूर्ण आह्नान का सम्मान नहीं रख सका पर, उस कारण तुम कुछ मन में मत रखना। उस दिन उन लोगों ने – मान-पत्र के साथ जिस काग़ज़ पर तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूं – ऐसे तीन सौ पत्रों का एक जिल्द बंधा पैड भी दिया है उस पर मेरा नाम भी छपा हुआ है। और एक पार्कर पेन, चांदी का एक सिगरेट केस भी दिया है। इसके अलावा बहुत से पुष्प, माला, फूलों के गुच्छे आदि भी दिए हैं। बहुत लोग आए थे – ताराशंकर वंद्योपाध्याय ने अध्यक्षता की थी। गाना, कविता की आवृत्ति, निबंध-पाठ, काव्य-पाठ हुआ था। जब ये चीजें विशेष रूप से फूल-माला आदि लेकर मेस से लौटा, तो तुम्हारी बहुत याद आ रही थी।
इस समय तुम्हारी उम्र 15 वर्ष ही तो है? 15+45 = 60 वर्ष जब तुम्हारी उम्र होगी, तब अगर तुम्हें धूमकेतु देखने को मिले, तब क्या तुम्हें मेरी बात याद आएगी। उस समय मैं तो मर कर ‘भूत’ की वस्तु बन जाऊंगा। तुम संध्या वेला में नाती-पोतों से घिरकर बैठी-बैठी कहानियां सुनाओगी। नतिनी से अंगुली दिखाकर कहोगी, वह देखो रेखा, हेली का धूमकेतु उदित हो रहा है- विभूति बाबू नाम के एक व्यक्ति ने बचपन में मुझसे कहा था, यह धूमकेतु मैं देखूंगी। आज विभूति बाबू की बात याद आ रही है।
रेखा पूछेगी-कौन विभूति बाबू दादी मां? तुम कहोगी वही हमारे बीते काल में एक लेखक थे, खूब किताबें- इताबें लिखा करते थे। और मैं? तब कहां का मैं?… हाय… रे!
मैं तुम्हारी जन्मभूमि को चाहता हूं या नहीं, यह पूछ रही हो, निश्चय ही चाहता हूं। तुम्हारी जब जन्मभूमि है, तब वह मेरी श्रद्धा की पात्र निश्चय ही है। फिर भी आंख से बिना देखे तो प्रेम किया नहीं जा सकता है, एक दिन सुतराम् देखने का आग्रह रहा। फ़ोटो जरूर मिल जाएगा। मुझे याद है, फिर भी इस समय बहुत व्यस्त हूं, इसलिए परिमल के द्वारा फ़ोटो खिंचवाने का अवसर नहीं प्राप्त कर पा रहा हूं। पूजा के समय जरूर मिल जाएगा।
अच्छा हमारी भ्रमण तालिका वनगांव पहुंचकर तुम लोगों से परामर्श कर ठीक की जाएगी। तुम लोगों से मतलब है तुम और बेलू। हां, अगर माया उस समय वहां तो वह भी रहेगी। फिर भी चटगांव तो जाना ही है, अगर ग्वालियर जाना न हुआ, रेणु ने फिर एक चिट्ठी लिखी है। चटगांव तो जाना ही पड़ेगा, नहीं तो वह नाराज हो जाएगी। इस मास के ‘प्रवासी’ में मेरी ‘सुलोचना की कहानी’ निकली है। वहां अगर ‘प्रवासी’ मिले तो पढ़कर देखना। उस दिन के उसी लॅट को लेकर ‘बॉक्स बदल’ नाम से एक कहानी लिखी है। कार्तिक मास की शारदीय संख्या ‘बंगश्री’ में निकलेगी। माया की वही बॉक्स बदलने की बात याद है न?
आशा है कुशल से होंगी। तुम हमारा स्नेहाशीर्वाद लेना। बेलू और अन्यान्य बालक-बालिकाओं को मेरा स्नेहाशीर्वाद कहना।
श्री विभूतिभूषण वंद्योपाध्यायग