
मानवता जिन बुनियादी गुनाहों में जीती आई है, उनमें से एक है शांति से जीने की उसकी नाक़ाबलियत। दरअसल मानवता के इतिहासों में जो कुछ लिखा गया है, वह शांति से अधिक युद्दों का इतिहास है। और सबसे गौरतलब बात ये है कि इस इतिहास में वे तितलियां और बच्चे नदारद हैं, जिन्होंने जंग के बारूद को सबसे गहरे जिया है। इस नाक़ाबलियत की सबसे बड़ी क़ीमत चुकाई है।
रॉयल शेक्सपियर अकादमी का एक प्रयोगात्मक नाटक है, जिसकी शुरुआत तितिलियों से होती है। एक अभिनेता बक्से में बंद तितली को पहले आज़ाद करता है और फिर उसे लाइटर जलाकर मार देता है। कहा जाता है कि 1966 में जब यह नाटक प्रदर्शित हुआ, उस समय इसे देखकर दर्शक ग़ुस्से से फट पड़े थे। जब उन्होंने चिल्लाते हुए कहा कि ये क्या बकवास लगाई हुई है… तितलियों को जलाते शर्म नहीं आती? तब नाटक के अभिनेता ने हाज़िरजवाबी दिखाते हुए जवाब दिया था, कि वियतनाम युद्ध में इन तितलियों की तरह और उससे भी बुरे तरीक़े से मासूम मारे जा रहे हैं और आप चुप्पी साधे हुए हैं! अगर आप इतने ही संवेदनशील हैं, तो युद्ध के ख़िलाफ़ सड़क पर क्यों नहीं उतरते?
कहते हैं अभिनेता के इस सवाल के बाद लंदन के एल्डविच थिएटर में सन्नाटा पसर गया था और दूसरे दिन से वाक़ई लोग सड़कों पर उतर आए थे।
उस अभिनेता का वह सवाल अतीत के उस कोने से वर्तमान की ओर ताक रहा है और दुनिया के तमाम कोनों से तितलियां उसकी ओर ताक रही हैं। और हम टीवी का रिमोट घुमाते हुए ख़बरें सुन रहे हैं। पर्दे पर यूक्रेन का राष्ट्रपति भावुक होकर यह क्या बोले जा रहा है। कहीं वह भी प्रकारांतर से उस नाटक के अभिनेता के सवाल को ही तो नहीं दोहरा रहा है…
‘युद्ध… संगीत का विलोम और क्या हो सकता है? तबाह शहरों की ख़ामोशी और मारे गये लोग। हमारे बच्चे टूटते हुए सितारों की नहीं, गिरते हुए रॉकेट्स की पेन्टिंग बना रहे हैं। 400 से ज़्यादा बच्चे घायल हैं और 153 बच्चे मारे जा चुके हैं। और अब हम उन्हें कभी चित्र बनाते नहीं देख पाएंगे। हमारे मां-बाप बमबारी के बीच भोर होते देखकर ख़ुश हैं, वे ख़ुश है कि वे ज़िंदा हैं। प्रेम करने वाले नहीं जानते कि वो कभी फिर से मिल सकेंगे या नहीं? युद्ध ने ये चुनने का मौक़ा नहीं दिया है कि कौन ज़िंदा बचेगा और कौन हमेशा के लिए ख़ामोश हो जाएगा…’
बेशक युद्ध हमें चुनने का मौक़ा नहीं देता, लेकिन युद्ध चुना जाए या नहीं जीवन हमें यह मौक़ा हमेशा देता है।
‘सेव द चिल्ड्रन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘2005 के बाद से कम से कम 95,000 बच्चे मारे गए हैं या घायल हुए हैं। हजारों बच्चों का अपहरण हुआ है और युद्धाकुल सत्ताओं ने अस्पतालों पर हमला कर लाखों बच्चों को स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित किया है।’ रिपोर्ट कहती है कि ‘2018 में दुनियाभर के छह में से एक बच्चा संघर्ष क्षेत्र में रह रहा था। मध्य पूर्व में आघात का अनुपात अधिक है, जहां तीन में से एक बच्चा संघर्ष से घिरा हुआ है।’
मानवता का वही इतिहास, जिसमें शांति से अधिक युद्ध का जलवा है, वह बताता है कि युद्ध ने मासूमों को केवल अनाथ भर नहीं किया है। उसने अगर उनके बचपन के रंग छीने हैं, तो बदले में कुछ दिया भी है… हां, उसने उन्हें युद्ध के औज़ार थमाए हैं। बल्कि उन्हें ख़ुद युद्ध के औज़ारों में तब्दील किया है। चाइल्ड सोल्जर्स इंटरनेशनल के मुताबिक़ सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के संघर्ष में 10,000 से ज्यादा हथियारबंद बच्चे सक्रिय हैं। यहां बच्चों को लड़ाके, गार्ड, इंसानी शील्ड, कुली, मैसेंजर, जासूस और कुक के रूप में भी भर्ती किया जाता है। युद्ध की आंच में झोंक दी गई ये तितलियां मानसिक ही नहीं दैहिक शोषण भी झेलती हैं। एक अन्य रिपोर्ट कहती है कि 2013 से अब तक दक्षिणी सूडान में विद्रोही संगठन तक़रीबन 17,000 बच्चों को हथियार थमा चुके हैं। इराक़ और म्यांमार की सेना पर भी बच्चों को लड़ाई में झोंकने के आरोप लगते रहे हैं। 2012 से अब तक म्यांमार की सेना के क़ब्ज़े से 700 बच्चों को मुक्त कराया जा चुका है।
पीडब्लू सिंगर की किताब चिल्ड्रेन इन वार ‘जी’ नाम से एक बाल-सैनिक की बात दर्ज करती है, दस साल का यह सिपाही कहता है कि, ‘हम डरे हुए हैं, क्योंकि हम बच्चे सेना के बारे में कुछ नहीं जानते। अपने डर को क़ाबू करने के लिए हमें ट्रेनिंग कैंप में किसी को मारना होता है। एक रोज़ वे मेरे सामने एक बच्चे को लेकर आए। उसका चेहरा ढंका हुआ था, मैं उसे नहीं जनता था, पर उन्होंने मुझसे कहा कि वह मेरा शत्रु है और मुझे उसे मारना है। मैंने ठीक वही किया। उस रात वह छुरा मेरे सिरहाने रखा रहा और मैं सो न सका।’
महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि ‘अगर हमें शांति तक पहुंच बनानी है, अगर हमें वाक़ई युद्ध के विरुद्ध युद्ध छेड़ना है, तो हमें बच्चों से सीखने की शुरुआत करनी होगी…’
लेकिन किन बच्चों से? वे जो युद्ध की भट्टी में तितलियों की तरह झोंके जा रहे हैं?
निकोला डेविस नाम का एक बाल-लेखक अपने जीवन में आए युद्ध के दिन को याद करते हुए लिखता है,
‘जिस रोज़ युद्ध आया खिड़की पर फूल खिले थे।
मेरे पापा ने छोटे भाई के लिए कोई गीत गाया था,
मां ने नाश्ता बनाकर चूमा था मेरा माथा
और मैं स्कूल गया था।
उस दिन मैंने जाना कि वोल्केनो क्या होता है
मैंने एक कविता गाई थी, जिसमें टोड आख़िर में मेढक बन जाता है
और अपना एक चित्र बनाया था जिस में मेरे पर उग आए थे।
फिर ठीक लांच के बाद बादल-सा कुछ गरजा
फिर बिजली कड़की और
उसके बाद धुआं, आग और शोर…
यह युद्ध था!
मैं युद्ध से बचकर भागा
पर वह मेरे पीछे-पीछे था
मेरी खाल के भीतर
मेरी आंखों में
मेरे सपनों में…’
दिमाग़ के पर्दे पर रोबर्ट डेन केसर की कहानी का अनाथ हो चुका वह बच्चा तैर आया है, जो अनाथालय के हाउस कीपर द्वारा मारी गई तितलियों के टुकड़े चोरी-छिपे बटोरकर उन्हें दफ़नाने का जोखिम मोल लेता है, क्योंकि उसे लगता है कि मारी जा चुकी वे तितलियां किसी दूसरी दुनिया में जाकर सुकून से उड़ सकेंगी… क्योंकि उसे मालूम है कि जीने और मरने के लिहाज़ से ये दुनिया कैसी जगह है!
उधर टीवी पर यूक्रेन के राष्ट्रपति के उद्बोधन की आख़िरी पंक्तियां बह रही हैं…
‘हमारे संगीतकार ख़ूबसूरत अचकन के बजाय बख़्तरबंद पहन रहे हैं। वे अस्पतालों में घायलों के लिए गा रहे हैं और उन लोगों के लिए भी जो अब उन्हें कभी नहीं सुन सकेंगे। लेकिन संगीत इन चुप्पियों को तोड़ेगा। हम अपनी ज़मीन पर स्वतंत्रता, जीवन, प्रेम और उम्मीदों की रक्षा कर रहे हैं। बम अपने साथ एक भयानक सन्नाटा लाया है। एक मरघट जैसा सन्नाटा। पर इस सन्नाटे को आप अपने संगीत से भर दें। आज ही… मेरे दिल में एक सपना है कि ये तराने बचे रहें…’