दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई

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गुलजार

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई

पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई

फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुगालता है कोई

देर से गूंजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई

कवि परिचय :

कविताओं और गीतों से मानव मन की परतें खोलने वाले गुलजार नई पीढ़ी में बेहद लोकप्रिय रहे हैं। उनकी प्रमुख कृतियां हैं— पुखराज, एक बूंद चांद, चौरस रात, रवि पार, कुछ और नज़्में, यार जुलाहे, त्रिवेणी, छैंया-छैंया, मेरा कुछ सामान।