Sukma : बेली ब्रिज केवल पुल नहीं है, यह एक प्रतीक है विश्वास का, सुशासन – कोरसा सन्नू

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सुकमा : (Sukma) जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र पुवर्ती के पास सिलगेर (strong Bailey Bridge on the Silger road near Puvarti, a Naxal-affected area of ​​the district) मार्ग पर बीआरओ ने एक मजबूत बेली ब्रिज का निर्माण कर दशकों से जो रास्ता मानसून में बंद हाेकर सुकमा जिले से कट जाता था, आज वहां लोहे के पुल मजबूती से खड़ा है। छत्तीसगढ़ के सुदूर और संवेदनशील बस्तर संभाग में बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) ने लोगों का आवागमन आसान कर रही है। देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाने वाला बीआरओ अब बस्तर के घुर नक्सल प्रभवित इलाकाें में विकास का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। केंद्र सरकार ने इस इलाके को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए 2024-25 में 66 करोड़ 74 लाख रुपये की लागत से 64 किलोमीटर की सड़क परियोजना को मंजूरी दी थी। इसमें एलमागुड़ा से पुवर्ती तक की 51 किलोमीटर सड़क का कार्य सबसे अहम माना जा रहा है, जिसकी लागत करीब 53 करोड़ रुपये है । इस सड़क का सीधा लाभ उन गांवों को मिलेगा जो आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।

जिला पंचायत सदस्य कोरसा सन्नू (District Panchayat member Korsa Sannu) ने कहा कि ‘ये केवल पुल नहीं है, यह एक प्रतीक है विश्वास का, सुशासन का और बदलाव का। मोदी सरकार और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की नीति अब धरातल पर नजर आ रही है। मार्च 2026 तक नक्सलवाद पर निर्णायक वार करने की रणनीति में ये एक अहम मील का पत्थर है।

उल्लेखनीय है कि कुख्यात नक्सली माड़वी हिड़मा का (Puvarti village of notorious Naxalite Madvi Hidma) गांव पुवर्ती और आस-पास के गांवों के निवासियों को हर बारिश में नदी पार करने के लिए जान जोखिम में डालनी पड़ती थी।इस दाैरान यह इलाका पूरी तरह से सुकमा से कट जाता था, और नक्सली स्वच्छंद विचरण करते थे, अब 15 मीटर लंबे बेली ब्रिज ने वह संकट समाप्त कर दिया है। सिलगेर से लेकर पुवर्ती, तिम्मापुरम, गोल्लाकोंडा, टेकलगुड़ा, जब्बागट्टा और तुमलपाड़ तक के लोग अब हर मौसम में निर्बाध रूप से आवागमन कर सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों से क्षेत्र में लगातार कैंप खोले जा रहे हैं। सड़कें, बिजली, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाएं धीरे-धीरे पहुंच रही हैं। बेली ब्रिज उस परिवर्तन का संकेत है, जो वर्षों की हिंसा और अलगाव के बाद अब विकास के नाम पर हो रहा है।

यह इलाका उस हिड़मा का गढ़ माना जाता है, जो नक्सली नेटवर्क का एक कुख्यात चेहरा है। ऐसे में यहां निर्माण कार्य को पूरा करना किसी चुनौती से कम नहीं था। सुरक्षा बलों की निगरानी में बीआरओ के इंजीनियरों और मजदूरों ने बिना प्रचार के बेहद तेजी से निर्माण कार्य को अंजाम दिया है। लोहे के ढांचे से बने इस पुल को जल्दी तैयार किया जा सकता है, और यह इलाके की बनावट के लिए बेहद उपयुक्त भी है।स्थानीय निवासी भीमा, नंदा और सुक्को का कहना है कि, “पहले यहां आने-जाने में जान की बाजी लगानी पड़ती थी। न कोई पुल था, न कोई साधन। बरसात में बच्चे स्कूल नहीं जा पाते थे, और बीमार को लेकर अस्पताल ले जाना असंभव था। अब इस पुल से गांव जुड़ गया है, अब डर नहीं लगता । पिछले कुछ वर्षों से क्षेत्र में लगातार कैंप खोले जा रहे हैं । सड़कें, बिजली, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाएं धीरे-धीरे पहुंच रही हैं। बेली ब्रिज उस परिवर्तन का संकेत है, जो वर्षों की हिंसा और अलगाव के बाद अब विकास के नाम पर हो रहा है।