शिवपुरी : भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता धैर्यवर्धन शर्मा के भाई के साथ एक प्लॉट खरीदी के मामले में धोखाधड़ी हो गई। पुराने ग्वालियर बायपास रोड पर सर्वे नंबर 169/3 एवं 170, पोहरी चौराहा एवं होटल पीएस के मध्य की जमीन पर प्लॉट खरीदी में भाजपा नेता धैर्यवर्धन शर्मा के साथ धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। एसपी को दिए शिकायती आवेदन में शर्मा ने कहा कि हमें ठगी का पता चला तो अपने स्तर पर जानकारी ली, जिसमें पता चला कि उक्त सर्वे नंबर की जमीन पर लगभग आधा दर्जन लोगों से और ठगी की गई है। शिकायत में भूमि के धैर्यवर्धन की रजिस्ट्री 29 जनवरी 2024 को हुई, जबकि इससे पहले जमीन विक्रेता नरेंद्र कुशवाह ने अजय शर्मा एवं मोनिश कोड़े के साथ अनुबंध कर लिया था, जो गहन जांच के दायरे में है। इसमें जितेंद्र करारे, हैदर खान, सौरभ मंडेलिया एवं इदरीस खान बतौर गवाह है। वर्ष 2005 से स्वयं को भूमिस्वामी बता रहे नरेंद्र जैन और बाबूलाल कुशवाह ने सब कुछ जानते हुए भी 8-9 साल तक चुप्पी क्यों साधे रखी?।
खरीददार धैर्यवर्धन से भूमि विक्रेता नरेंद्र कुशवाह एवं उसके ममेरे भाई बाबूलाल कुशवाह ने अपने साथियों के साथ मिलकर इस ठगी को अंजाम दिया है। धैर्यवर्धन ने बताया कि उन्होंने 25 फीट का आम रास्ता छोड़कर बायपास रोड पर भूमि की रजिस्ट्री कराई है। भूमि के विक्रेता नरेंद्र कुशवाह ने जमीन बेचने के पहले उसका स्वयं का आधार कार्ड, पेन कार्ड, बैंक पास बुक एवं उसके स्वामित्व की जमीन के खसरा, खतौनी, भू अधिकार पुस्तिका आदि दिखाई थी। चूंकि नरेंद्र कुशवाह, बाबूलाल कुशवाह का रिश्तेदार है और उसकी पहचान का कन्फर्मेशन श्रीराम कॉलोनी निवासी कल्लाराम कुशवाह एवं धर्मेंद्र कुशवाह से किया था। रजिस्ट्री विभाग द्वारा राजस्व विभाग से रिकॉर्ड परीक्षण करने के पश्चात ही उक्त भूमि की मेरे नाम रजिस्ट्री की गई। क्रेता नरेंद्र कुशवाह को मैंने चेक से 9 लाख का भुगतान किया था, तथा शासन को लगभग लाख रुपए के स्टांप लगाकर बड़ राजस्व भुगतान प्रदान किया है।
बकौल धैर्यवर्धन हमारे द्वारा क्रय की गई भूमि का तहसीलदार द्वारा नामांतरण निरस्त कर दिया, क्योंकि नरेंद्र जैन ने एसडीएम के यह आवेदन दिया है कि वो 2005 में यह भूमि मोहन पुत्र खूबीलाल कुशवाह से खरीद चुके हैं। 2015 के पश्चात राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में इस जमीन पर नरेंद्र जैन के बजाए नरेंद्र कुशवाह का नाम लिखा गया है धैर्यवर्धन ने आरोप लगाया है कि लगभग 8 साल पहले राजस्व विभाग के तत्कालीन अधिकारी-कर्मचारियो ने रिश्वतखोरी करके जानबूझकर रिकॉर्ड में परिवर्तन किया।