
सैयद शहरोज़ क़मर
क़त्लो-ग़ारत के एलान और हरकतों के बीच आज भी कुछ फुहारें तपिश में राहत देती हैं। ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा’ लिखने वाले शायर इक़बाल के बक़ौल ‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’ भड़काऊ नारे-गीत (कहीं एक समुदाय विशेष को धार्मिक जुलूस में मादरज़ाद गालियाँ भी) और पत्थरबाज़ी के बीच कई जगह रामनवमी जुलूस का रोज़ेदारों ने शर्बत और चने से इस्तक़बाल किया। हमारे शहर रांची में जुलूस के स्वागत के बाद हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई भाइयों ने साथ इफ़्तार भी किया।
इसी बीच कर्नाटक से बेहद मनोहारी सूचना मिली कि जिस मंदिर के उत्सव में मुस्लिम कारोबारियों को दुकान लगाने से रोक दिया गया था, उसी के रथ उत्सव का शुभारंभ-आग़ाज़ क़ुरआन की तिलावत से हुआ। इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़ कर्नाटक के बेलूर स्थित इस मंदिर को चेन्नाकेशव मंदिर कहते हैं।
यह वही मंदिर है, जिसके प्रबंधन ने दक्षिणपंथियों के दबाव के चलते मुस्लिम व्यापारियों को बैन कर दिया था। लेकिन बाद में राज्य सरकार के तहत आने वाले एंडोमेंट बोर्ड ने मंदिर के अधिकारियों से ऐसा ना करने को कहा। जिसके बाद करीब 15 मुस्लिम व्यापारियों ने दुकानें लगाईं।
अब रथ उत्सव की शुरुआत को लेकर असमंजस बना हुआ था। क्योंकि सदियों पहले से ‘रथोत्सव’ की शुरुआत कुरान की आयतें पढ़कर की जाती रही है। लेकिन दक्षिणपंथी संगठन इसे न करने के लिए लगातार दबाव बनाए हुए थे। लेकिन जीत ‘सर्वधर्म समभाव वाली परंपरा’ की ही हुई। मंदिर परिसर पहुंचे एक आलिम और क़ुरआन की तिलावत की। ज़िंदाबाद हिंदुस्तान! ज़िंदाबाद हिंदुस्तानियत!!
किसी अनहोनी की आशंका के मद्देनज़र पुलिस पहले से तैनात थी। यह ख़बर उन ना-पाक मुल्क को पढ़नी चाहिए। यह सिर्फ़ भारत में ही हो सकता है कि किसी मंदिर के आयोजन का आरंभ क़ुरआन की तिलावत से होता है।
मोहब्बत से लबरेज़ ऐसी एक कहानी उत्तर प्रदेश के इटावा से मिली है। यहां शिवा कॉलोनी अड्डा जालिम में रहने वाले अमर सिंह शाक्य आजकल रोज़े से हैं। और सुनिए ये पहला रमज़ान नहीं है, वो 22 सालों से हर रमज़ान में पूरे माह रोज़ा रखते हैं। इनके घर में एक मज़ार भी है। उन्होंने अपना कोई धर्म नहीं बदला है। बस उनकी आस्था जिस तरह पूजा-पाठ में है, व्रत में है, वैसा ही अक़ीदा उनका रोज़े और मज़ार से है।
नवरात्रि और ईद में वो भंडारे भी लगाते हैं। मिज़ाज से समाजसेवी अमर शाक्य एक वृद्धाश्रम भी बनवा रहे हैं। जिसकी दीवारों पर हर धर्म से संबंधित तस्वीरें सु-सज्जित रहेंगी। ऐसे ही लोग इतिहास में अमर होते हैं। उत्तर प्रदेश के ही किसी गाँव की कहानी कुछ दिनों पहले सामने आई थी, जहां किसी घर की पहचान करना मुश्किल होता है कि ये हिन्दू का है या मुसलमान का। क्योंकि भाई हिन्दू है तो दूसरा मुसलमान। कहीं पत्नी मुस्लिम है तो पति हिन्दू। हमारा देश विश्व का सबसे अनूठा है। इतना रंगबिरंगा पर एक रंग सबसे गाढ़ा वो है, आपसी एकता। जो इधर-उधर भटक रहे हैं, उनसे अखंड भारत की ख़ातिर फ़ैज़ के बक़ौल अर्ज़ है:
गुलो में रंग भरे बाद-ए-नौ बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले।
आइए भाईचारे की ऐसी परम्परा-कथा को अपने गुलशन भारत के लिए आम (प्रचलित) करें। इसे पढ़ें और पढ़ाएं।
अंत में यही दुआ है:
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।
(सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।)