
एक बार भगवान बुद्ध (mahatma buddh) वाराणसी में एक किसान के घर भिक्षा मांगने गए। साथ में कुछ शिष्य भी थे। किसान ने एक बार उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा और फिर बोला— ‘मैं तो किसान हूं। अपना कठोर श्रम करके पेट पालता हूं। आप क्यों बिना श्रम किए आहार प्राप्त करना चाहते हो?’
बुद्ध ने शांत भाव से उत्तर दिया— ‘भैया, मैं भी किसान हूं। खेती करता हू’।’
‘कैसे?’ किसान बोला।
भगवान बुद्ध ने किसान की शंका का समाधान करते हुए कहा— ‘मैं ज्ञान की खेती करता हूं। मेरा खेत आत्मा है। मैं ज्ञान के हल से श्रद्धा के बीज बोता हूं। तपस्या व साधना के जल से उसे सींचता हूं। सत्य व अहिंसा के सतत प्रयास से निर्वाह करता हूं। यदि तुम मुझे अपनी खेती का कुछ भाग दोगे तो मैं भी अपनी खेती का भाग दूंगा।’ किसान को बुद्ध की बात पसंद आ गई, वह उनके चरणों में नतमस्तक हो गया।