Prayagraj : नियुक्ति के समय नाबालिग बाद में नियमित हुए कर्मचारी को हटाना अनुचित

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हाईकोर्ट ने रद्द किया नियमितीकरण निरस्त करने का वन संरक्षक का आदेश
प्रयागराज : (Prayagraj)
इलाहाबाद उच्च न्यायालय (The Allahabad High Court) ने फॉरेस्टर (वन दरोगा) की सेवाओं का नियमितीकरण निरस्त करने के आदेश को रद्द कर दिया है और याची को सेवा जनित समस्त परिलाभों का हकदार माना है।

कोर्ट ने कहा कि याची पर तथ्य छिपाने, धोखाधड़ी या गलत बयानी करने का आरोप नहीं है और दैनिक कर्मी के रूप में दशकों से सेवाएं दे रहा है। ऐसे में वह साम्यां न्याय के सिद्धांतों के तहत राहत पाने का हकदार हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति विकास बुधवार ने अंजनी कुमार सिंह की याचिका पर दिया है।

याची को जनवरी 1991 में वन विभाग में दैनिक वेतन भोगी के रूप में समूह ’सी’ के पद (फॉरेस्टर-वन दरोगा) पर नियुक्त किया गया था। बाद में उनकी सेवाओं का 26 मार्च 2002 को नियमितीकरण कर दिया गया और उन्होंने 01 अप्रैल 2002 को नियमित कर्मचारी के रूप में कार्यभार (assumed charge as a regular employee on April 1, 2002) संभाला।

हालांकि, 07 मई 2003 को वन संरक्षक, वाराणसी ने उनके नियमितीकरण को निरस्त कर दिया। कहा कि नियुक्ति के समय (जनवरी 1991) याची की आयु मात्र 16 साल 8 महीने 28 दिन थी, जबकि नियमानुसार न्यूनतम आयु 18 वर्ष होनी चाहिए। याची का जन्म 01 अक्टूबर 1974 को हुआ था।

कोर्ट ने कहा याची के रिकॉर्ड में सेवाकाल के दौरान कोई अन्य कमी नहीं है। याची 1991 से लगातार कार्यरत हैं और 2003 के बाद से कोर्ट के अंतरिम आदेश के तहत काम कर रहे हैं।

कोर्ट ने उच्चतम न्यायालय और अपनी ही खंडपीठ के पूर्व के कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि यदि किसी कर्मचारी को कम उम्र में नियुक्त कर लिया जाता है और इसमें उसकी कोई धोखाधड़ी नहीं है, तो दोनों पक्ष समान रूप से जिम्मेदार हैं। ऐसे में, लंबे समय तक सेवा देने के बाद उसे नौकरी से हटाना उचित नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी “अनियमितता“ को समय बीतने के साथ ठीक माना जा सकता है, खासकर जब वह “अवैधता“ की श्रेणी में नहीं आती।

कोर्ट ने वन संरक्षक, वाराणसी का 07 मई 2003 का आदेश रद्द किया गया। याची के नियमितीकरण (26 मार्च 2002) के आदेश को बहाल किया। याची को इससे जुड़े सभी कानूनी लाभ पाने का हकदार घोषित किया गया।