
आलोक गुप्ता
प्रयागराज : गोलोक में भी पृथ्वी लोक जैसा सुख नहीं है। जो आनंद यहां (पृथ्वीलोक) है, कहीं और नहीं। भगवान उस घर से कहीं नहीं जाते, जिस घर में उनकी निष्काम भाव से आराधना की जाती है। भगवान को भी मृत्युलोक पसंद है। उन्हे (भगवान को) जो प्रेम यहां मिलता है, कहीं नहीं मिलता। यह बातें डा. विशुद्धानंद ब्रह्मचारी जी महाराज ने कही। नगर पंचायत शंकरगढ़ के कनकनगर मोहल्ले में आयोजित श्रीमगत भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में ब्रह्मचारी महराज ने भगवान और भक्त के बीच प्रेम की व्याख्या करते हुए कहा, पृथ्वी की बुराई मत करो। अपने घर की निंदा नहीं करनी चाहिए। झोपडी की भी प्रशंसा करिए। पति, बच्चों की भी निंदा न करें। निर्रथक किसी की निंदा न करें। जब हम इस धरती का आनंद ही नहीं ले सकते, तो कोई क्या कर सकता।
सुख और आनंद धन से नहीं मिलता।
आठ नवंबर से 16 नवंबर तक चलनेवाली भागवत कथा में ब्रह्मचारी महाराज ने कहा, जिसमें दया हो वही भगवान को प्राप्त करता है। भक्त-भगवान की महिमा की व्याख्या करते हुए ब्रह्मचारी महाराज ने अहम विनाश का सबसे बड़ा कारण है। रंच मात्र सफलता मिलने पर लगने लगता है कि इस धरती पर हमसे बड़ा कौन है। कहा, आप कितने भी ऊपर चले जाइए, जीवन में अहंकार को कभी भी स्थान मत दीजिए। इसके साथ उन्होंने सामाजिक संबंधों की भी व्याख्या की। कहा, धरती लोकपर संबंधों की भी एक दुनिया है। एक ही स्त्री किसी की बुआ है, किसी की मां, किसी की बेटी और किसी की बहू। अगर आपको संबंध निभाना नहीं आया तो समझ लीजिए कि आप बोझ हैं।
डा. विशुद्धानंद महाराज ने कहा, इस पृथ्वी पर कुल 10 संबंध हैं। जिसमें जननी, जनक, बंधु, सुत, दारा, तन, धन, भवन, सुहृदय, परिवार, ये 10 रिश्ते, जिसका निर्वहन कर लीजिए, सारा सुख धरती पर ही मिल जाएगा और जीवन भी तर जाएगा और जो संबंध आपको प्रिय हो भगवान से बना लीजिए, जीवन धन्य हो जाएगा।

राधे तेरे चरणों की धूल जो मिल जाए…
महराज ने कहा कि श्री कृष्ण की बाललीला का रसपान करना हो तो सूरदास के पदों को पढ़ना चाहिए। श्रीमद भागवत कथा की एक कथा का उल्लेख करते हुए कहा, दुनिया कह रही है कि भरत जैसा कोई साधु, त्यागी नहीं है। उन्होंने अपने मनमोहक भजन- राधे तेरे चरणों की धूल जो मिल जाये, सच कहता हूं तकदीर बदल जाए। नजरों से गिराना ना, चाहे जितनी सजा देना, नजरों से जो गिर जाए, मुश्किल है संभल जाना, राधे तेरे चरणों की, धूल जो मिल जाए, सच कहता हूं, तेरी तकदीर बदल जाए… सुनाकर श्रोताओं को भक्तिभाव से सराबोर कर दिया। कथा के अंत में मुख्य यजमान रामकैलाश सोनी ने सपत्नीक आरती उतारी और पूजा अर्चना की। प्रसादवितरण के साथ कथा का समापन किया गया। इस मौके पर श्रोता के रूप में शिवकैलाश, कृष्ण कैलाश, मोहन सोनी, रामायण, संतोष, कौशलेश आदि मौजूद रहे।