जीवन, मृत्यु, हताशा, आश्वासन, द्वेष और प्रेम; क्या कुछ नहीं था कुंवर नारायण तुम्हारी कविताओं में!

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कुंवर नारायण यानी यथार्थ का कवि। कुंवर नारायण का रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं। जीवन, मृत्यु, हताशा, आश्वासन, द्वेष और प्रेम, क्या कुछ नहीं है कुंवर नारायण की कविताओं में।

कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब

अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं,

हमारे चारों ओर नहीं।

कितना आसान होता चलते चले जाना

यदि केवल हम चलते होते

बाक़ी सब रुका होता।

मैंने अक्सर इस ऊलजलूल दुनिया को

दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में

अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है।

शुरू-शुरू में सब यही चाहते हैं

कि सब कुछ शुरू से शुरू हो,

लेकिन अंत तक पहुँचते-पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं।

हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती

कि वह सब कैसे समाप्त होता है

जो इतनी धूमधाम से शुरू हुआ था

हमारे चाहने पर।

दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए

जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे—

जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब

तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में

जिन्हें तुमने जीता है—

जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे

और काँपोगे नहीं—

तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं

सब कुछ जीत लेने में

और अंत तक हिम्मत न हारने में।

इतना कुछ था दुनिया में
लड़ने झगड़ने को
पर ऐसा मन मिला
कि ज़रा-से प्यार में डूबा रहा
और जीवन बीत गया

पार्क में बैठा रहा कुछ देर तक
अच्छा लगा,
पेड़ की छाया का सुख
अच्छा लगा,
डाल से पत्ता गिरा- पत्ते का मन,
“अब चलूँ” सोचा,
तो यह अच्छा लगा…

कई दर्द थे जीवन में :
एक दर्द और सही, मैंने सोचा —
इतना भी बे-दर्द होकर क्या जीना !

अपना लिया उसे भी
अपना ही समझ कर

जो दर्द अपनों ने दिया
प्यार के बदले…

कई दर्द थे जीवन में :
एक दर्द और सही, मैंने सोचा —
इतना भी बे-दर्द होकर क्या जीना !

अपना लिया उसे भी
अपना ही समझ कर

जो दर्द अपनों ने दिया
प्यार के बदले…