अक्सर!

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अक्सर! मुझे लगता है
जो हारा हुआ आदमी है
वह मैं ही हूं
वह जो भीड़ के बाहर कहीं छूट कर
भटक गया है
वह थका आदमी मैं ही हूं
वह जिसे एक निर्दय भीड़ पीट रही है
वह मारा जा रहा आदमी मैं ही हूं.

वह स्त्री जिसे उसके ही आंगन में
जीवित जलाया जा रहा है वह भी मैं ही हूं
वह लड़की जिसके शव को
तेल छिड़क कर
रात की चिता में सुलगाया जा रहा है
वह मैं ही हूं!

हर रुलाई मेरी है मेरी है हर चीख
हर टूटी पसली कटा हुआ शीश
पीठ पर रस्सी से बंधे हाथ
हर झुकाया हुआ लज्जित माथ
मेरा ही हैं!

हर रोती आंख मेरी है
हर जलता घर मेरा है.

अक्सर मुझे लगता है
घोसला बनाती चिड़िया
और खूंटे पर बंधी व्यथित गाय मैं ही हूं!

अक्सर मुझे लगता है
और मैं वेदना व्यथा से घिर जाता हूं
और अनेक बार अपनी ही दृष्टि में
गिर जाता हूं!