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Homepoemकव‍िता : अगर मैं न रहूं

कव‍िता : अगर मैं न रहूं

अगर मैं न रहूं,
तो खुली छोड़ देना बालकनी।

वो छोटू खा रहा है संतरे।
(देख सकता हूं उसे अपनी बालकनी से)

वो कटेरा कर रहा है गेहूं की कटाई।
(सुन सकता हूं उसकी आवाज अपनी बालकनी से)

अगर मैं न रहूं,
तो खुली छोड़ देना बालकनी…

फेदेरीको गार्सिया लोर्का

मूल रूप में एक कवि थे।

आगे चलकर वे नाटककार के रूप में भी उतने ही प्रसिद्ध हुए।

उन्‍होंने कोई औपचारिक विश्वविद्यालय शिक्षा प्राप्त नहीं की थी।

अनुवाद : भूवेंद्र त्‍यागी

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