Patna : राजग का ‘एमवाई’ फार्मूला महागठबंधन के ‘एमवाई’ फैक्टर पर पड़ा भारी

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पटना : (Patna) बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly election) के नतीजों ने सियासत में बड़ा उलटफेर किया है। सत्ता पाने की आस लगाए बैठे महागठबंधन को बिहार की जनता ने उम्मीदों के आसमान से असलियत की जमीन पर लाने का काम किया है। बिहार की राजनीति में एमवाई (मुस्लिम-यादव) फैक्टर की बड़ी गूंज सुनाई देती (The MY (Muslim-Yadav) factor resonates strongly in Bihar politics) है। महागठबंधन में शामिल राजद , कांग्रेस और अन्य वाम दलों का प्रमुख वोट बैंक एमवाई फैक्टर ही माना जाता है, लेकिन इस पर महागठबंधन की बजाय राजग को ‘एमवाई’ फैक्टर यानी (महिला+युवा) महागठबंधन के एमवाई (मुस्लिम-यादव) पर भारी पड़ा है।

नीतीश कुमार ने इस बार एमवाई (महिला + युवा) फैक्टर को ऐसा बूस्टर डोज दिया है कि महागठबंधन पूरी तरह फंस गया, जिस एमवाई (मुस्लिम + यादव) समीकरण पर लालू-तेजस्वी की राजनीति दशकों से टिकी है, उसी को नीतीश ने एमवाई (महिला + युवा) में बदल कर और वह भी इतनी चालाकी से कि महागठबंधन को समझते-समझते देर हो गई। आलम यह रहा है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में भी राजग के पक्ष में खूब वोट पड़े हैं और इन इलाकों से राजग के प्रत्याशी चुनाव जीतकर आए हैं।

इस भारी जीत के पीछे सबसे बड़ा फैक्टर माना जा रहा है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नया ‘एमवाई फार्मूला’(Chief Minister Nitish Kumar’s new “MY formula”)। राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्र “( Political analyst and senior journalist Luv Kumar Mishra) ने बताया कि दशकों से बिहार की राजनीति में एमवाई का मतलब रहा-मुस्लिम+यादव, जो राजद की सबसे मजबूत सामाजिक समीकरण माना जाता था, लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने इसे पूरी तरह बदल दिया और एमवाई को एक नया अर्थ दे दिया महिला+युवा। नीतीश कुमार की रणनीति बेहद सटीक और जमीन से जुड़ी रही। महिलाओं के लिए ‘मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना’, शराबबंदी, सुरक्षा योजनाएं और लड़कियों की शिक्षा पर फोकस ने महिला मतदाताओं को बड़ी संख्या में राजग के पक्ष में कर दिया। वहीं, युवाओं को नौकरी, कौशल विकास और ‘जंगलराज’ की याद दिलाकर राजग ने युवा मतदाताओं को भी मजबूती से साधा।

राजनीतिक विशलेषकों के अनुसार, बिहार में मुख्य चुनावी मुद्दों में से एक नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार की ओर से ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ के तहत महिलाओं के खातों में 10-10 हजार रुपये डालना एक निर्णायक मुद्दा बन गया, खासकर महिला मतदाताओं के बीच। इस योजना का मुख्य उद्देश्य राज्य की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें स्वरोजगार के अवसर प्रदान कर आर्थिक रूप से सशक्त बनाना था।

बिहार विधानसभा के लिए दो चरणों में हुए मतदान में इस बार रिकॉर्ड मतदान हुआ। राज्य में दोनों चरणों में 67 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। दोनों चरणों में पुरुषों की तुलना में कम से कम 4,34,000 अधिक महिलाओं ने मतदान किया। प्रतिशत के हिसाब से महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.6 फीसदी रहा, जबकि पुरुषों का 62.8 फीसदी रहा। दोनों चरणों में महिलाओं और युवाओं ने बढ़—चढ़कर हिस्सा लिया।

मतदान केंद्रों के बाहर महिला मतदाताओं की लम्बी-लम्बी लाइनों से इस बात का अनुमान लगाया जा रहा था कि इस बार के चुनाव नतीजे ऐतिहासिक होंगे। बतौर मतदाता पंजीकृत पुरुषों की संख्या लगभग 3.94 करोड़ थी, जबकि पंजीकृत महिलाओं की संख्या लगभग 3.51 करोड़ थी।

सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में भी इस बार राजग को अपेक्षा से कहीं अधिक वोट मिले हैं। यही वजह है कि महागठबंधन का पारंपरिक वोटबैंक भी इस चुनाव में बिखर गया। कुल मिलाकर, अब तक के रुझान साफ इशारा कर रहे हैं कि बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार का ‘सुशासन मॉडल’ जनता की पहली पसंद बना है। नीतीश कुमार ने इस चुनाव में महिलाओं और युवाओं को केंद्र में रखकर प्रचार की पूरी रणनीति बनाई। जहां एक तरफ तेजस्वी यादव ‘पढ़ाई-कमाई-दवाई’ का (education, earnings, and medicine) नारा दे रहे थे, वहीं नीतीश ने महिलाओं के लिए ठोस काम और युवाओं के लिए जंगलराज की याद को हथियार बनाया।