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हमारी रोटियां और हम

राजेश्वर सिंह
मोहल्ले में पानी के टैंकर के पीछे लगी कतार को देख हम पहले अपने घर की बाल्टी, डिब्बा, टब, टंकी को झांककर यह इत्मीनान करते हैं कि हमारे पास पानी है या नहीं। यह, किसी भी जीव की स्वाभाविक मनोदशा को दर्शाती है। चींटियां भी बरसात के आने से पहले से अपना भंडार भर लेती हैं। ठीक, यही स्थिति इस समय गेहूं की हो रखी है। भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर बैन क्या लगाया, पूरे विश्व समुदाय में चिंता की लहर दौड़ पड़ी। तमाम तरह की अटकलें लगाई जाने लगीं। जबकि समूचे विश्व में निर्यात होने वाले कुल गेहूं में हम सिर्फ दो-तीन फीसद ही हिस्सेदारी रखते हैं। वैसे, गेहूं के निर्यात पर लगाए गए बैन से इतना तो पुख्ता हो गया है कि हमें रोटियों की कोई चिंता नहीं।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से विश्व में गेहूं की सप्लाई चेन प्रभावित हुई है। भारत द्वारा गेहूं के निर्यात पर बैन लगाने से वैश्विक समुदाय में हलचल बढ़ गई है। मई 2022 के तीसरे सप्ताह में यूनाइटेड नेशन ने भी यह कहकर वैश्विक समुदाय में उथल-पुथल मचा दी है कि पूरे विश्व के पास सिर्फ दस सप्ताह अर्थात 70 दिन का ही गेहूं शेष बचा है। संयुक्त राष्ट्र ने यह भी कहा कि दुनिया में खाद्यान्न का ऐसा संकट एक पीढ़ी में एक ही बार होता है। इसके कुछ ही दिन के बाद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने भी भारत से गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध के अपने फैसले को लेकर पुनर्विचार करने का आग्रह करते हुए कहा कि- ऐसा करके देश अंतरराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और वैश्विक स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

मीडिया में आने वाली इस तरह की खबरों को लेकर चिंता करना स्वाभाविक है। इस तरह की खबरों के आने से जमाखोरी (स्टॉक होल्डिंग) बढ़ जाती है और हम भारतीय तो इसमें बहुत आगे हैं। कोरोना काल में जब पहली दफा लॉकडाउन लगा तो लोगों ने खाने-पीने की वस्तुओं स्टाक घर में रखना शुरू कर दिया। व्यापारियों ने भी इसका खूब फायदा उठाया।

इन दिनों, दुनिया में गेहूं की कम आपूर्ति और बढ़ती कीमतों की वजह रूस-यूक्रेन युद्ध तो है ही, भारत में गर्मी पहले आ जाने के कारण गेहूं की फसल भी कमजोर हुई है। देश में गेहूं का दाम पिछले साल के मुकाबले करीब 20 प्रतिशत ज्यादा है। आटा भी लगभग 15 प्रतिशत महंगा हो चुका है। यूरोपीय देशों में गेहूं और आटे का भाव रिकार्ड ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है। भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और बिहार में गेहूं की खेती प्रमुखता से की जाती है।

कृषि विज्ञान केंद्र, कालाकांकर के प्राचार्य अखिलेश श्रीवास्तव कहते हैं, भारत में खाद्यान्न की कोई कमी नहीं है। पहले भी कहा जा चुका है कि दो यदि साल तक एक दाना भी नहीं होगा तो पूरी आबादी का पेट भरा जा सकता है। सरकार के पास बफर स्टॉक काफी है। प्राचार्य अखिलेश श्रीवास्तव ने कहा कि इस बार मौसम में आए उतार-चढ़ाव से उत्पादन में थोड़ा फर्क पड़ा है। और, हमारी अपनी जरूरतें भी बड़ी हैं, इसलिए भारत सरकार ने निर्यात पर बैन लगाने का फैसला लिया होगा। गेहूं क्रय केंद्रों पर अभी खरीद जारी है। पहले बफर स्टाक को भरा जाएगा। घरेलू बाजार में धीरे-धीरे रेट सामान्य हो जाएंगे।

भारतीय बाजार में गेहूं की कीमतों में आए उछाल की बावत अखिलेश श्रीवास्तव कहते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध को देखते हुए बड़े ट्रेडर्स ने सीधे किसानों से खरीद शुरू कर दी और अच्छा भाव दिया, नतीजतन ज्यादातर किसान प्राइवेट संस्थाओं के पास जाने लगे। फिलहाल देशभर में एमएसपी पर गेहूं की खरीद जारी है। मई माह में भारत सरकार द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक रबी के सीजन 2022-23 में अप्रैल महीने तक 137 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) गेहूं की खरीद की गई है, जिसमें करीब 12 लाख किसानों को 27 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। रबी की फसलों के लिए जो एमएसपी तय की गई है, वह किसानों की लागत के मुकाबले डेढ़ गुना के बराबर है। खाद्य मंत्रालय के सचिव सुधांशु पांडेय ने मीडिया से बातचीत में कहा कि सरकार के हस्तक्षेप से गेहूं की कीमतों में गिरावट आई है।

अब बात करते हैं गेहूं के उत्पादन की तो पूरे विश्व में भारत, गेहूं उत्पादन के मामले में दूसरा स्थान रखता है। गेहूं के उत्पादन में भारत ने पिछले चार दशक में लंबी छलांग लगाई है। साठ के दशक तक जहां भारत में 12 से 13 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन होता था, वहीं साल 2019-20 तक यह उत्पादन 107 मिलियन टन से अधिक हो गया। जनसंख्या के लिहाज से भारत की जरूरतें भी बड़ी हैं और निरंतर बढ़ रही हैं। देश की बढ़ती आबादी को खाद्य एवं पोषण सुरक्षा प्रदान करने के लिए इसमें लगातार वृद्धि की जरूरत होगी। एक अनुमान के मुताबिक साल 2025 तक भारत की कुल आबादी (उस समय की) 117 मिलियन टन गेहूं की जरूरत होगी।

पिछले पांच वर्षों में दस गुना उत्पादन के साथ भारत पूरे विश्व में गेहूं उत्पादन के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश है। उत्पादन में सिर्फ चीन हमसे आगे है। जबकि तीसरे स्थान पर रूस, चौथे पर संयुक्त राज्य अमेरिका, पांचवें पर कनाडा है। इसके बाद फ्रांस और यूक्रेन का नंबर आता है। पूरी दुनिया में 22.5 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में गेहूं की खेती की जाती है। यूनाइटेड नेशंस फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक धरती के 35 फीसद से ज्यादा लोगों का मुख्य अनाज गेहूं ही है।

वैश्विक बाज़ार में मुख्य आपूर्तिकर्ता के रूप में रूस और यूक्रेन का दबदबा है। यह दोनों राष्ट्र कुल निर्यात का लगभग एक तिहाई हिस्सा सप्लाई करते हैं। रूस और यूक्रेन की सप्लाई पर विश्व के लगभग 50 देश आश्रित हैं। मौजूदा समय में रूस-यूक्रेन युद्ध, गेहूं की सप्लाई में एक बड़ी बाधा बना हुआ है। इसके अलावा रूस (गेहूं का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश) पर लगाए गए तमाम प्रतिबंधों के कारण भी गेहूं की सप्लाई प्रभावित हुई है। इससे इतर 2020-21 के दौरान भारत ने 20,88,487.66 मीट्रिक टन गेहूं निर्यात किया था। जिसकी कीमत लगभग चार हजार करोड़ रुपये थी। भारत ज्यादातर अपने पड़ोसी देशों के साथ संयुक्त अरब अमीरात को गेहूं निर्यात करता है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारत 70 लाख टन गेहूं का निर्यात कर चुका है। इसके अलावा जिन देशों से पहले से करार है, उसे गेहूं की सप्लाई जारी रहेगी। गेहूं निर्यात के लिए कोई नया समझौता नहीं किया जाएगा।

विदेशों में भारतीय गेहूं की बेहतर मांग के कारण वर्ष 2021-22 में भारत का गेहूं निर्यात (70 लाख टन) सर्वकालिक उच्च स्तर पर रहा। जिसका मूल्य 2.05 अरब डॉलर है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा (गेहूं के कुल निर्यात में) अकेले बांग्लादेश को निर्यात किया गया था। फिलहाल गेहूं के कम उत्पादन और निजी कंपनियों द्वारा गेहूं की अधिक खरीद के बीच, चालू विपणन वर्ष 2022-23 (अप्रैल-मार्च) में सरकार की गेहूं खरीद पिछले साल की खरीद 4.33 करोड़ टन के उच्चतम स्तर के मुकाबले इस बार घटकर लगभग 1.85 करोड़ टन तक रह जाने की संभावना है।

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