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New Delhi : मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के सांविधिक संकल्प को राज्यसभा ने मंजूरी दी

नई दिल्ली : (New Delhi) राज्यसभा में वक्फ संशोधन बिल (Waqf Amendment Bill) पास होने के बाद आधी रात के बाद मणिपुर पर चर्चा हुई और सदन ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। इस दौरान करीब पौने दो घंटे तक राज्यसभा में मणिपुर पर चर्चा हुई। चर्चा के दौरान विपक्ष के सदस्यों ने केंद्र सरकार की आलोचना की।

राज्यसभा ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने को अनुमोदित करने वाले सांविधिक संकल्प पर आज तड़के चार बजे अपनी मुहर लगा दी। केंद्रीय गृहमंत्री ने अपने जवाब में सदन को आश्वस्त किया कि राज्य में हालात तेजी से सुधर रहे हैं। उसके बाद मैतेई और कुकी दोनों समुदायों से संवाद की प्रक्रिया वहां शुरू की जाएगी। स्थिति सामान्य होते ही राष्ट्रपति शासन हटा दिया जाएगा। इसके बाद सदन ने ध्वनिमत से इस संकल्प को पारित कर दिया। लोकसभा इसे एक दिन पहले ही पारित कर चुकी है।

गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) ने ने चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि 13 फरवरी, 2025 को जो राष्ट्रपति शासन मणिपुर में लगाया गया, उसकी मान्यता के लिए सदन में उपस्थित हूं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन किसी भी तरह से लगाया जाए, अनुच्छेद 356(1) के तहत ही लागू किया जा सकता है। मणिपुर में 11 फरवरी को मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया, इसके बाद किसी पार्टी ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया तो राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। उस सरकार के खिलाफ कोई अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया था। मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया था। किसी ने सरकार गठन का दावा नहीं किया तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। 13 फरवरी को राष्ट्रपति शासन लगा लेकिन उससे पहले से ही वहां हिंसा थम चुकी थी और आज भी वहां कोई हिंसा नहीं है।

चर्चा के दौरान कुछ सदस्यों द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए गृहमंत्री ने कहा कि देश के दो समुदायों के बीच हिंसा और देश के खिलाफ हथियार उठाना (नक्सली हिंसा) में फर्क है। मणिपुर में जातीय हिंसा में कुछ महिलाओं के साथ ज्यादती हुई लेकिन संदेशखाली में जो कुछ हुआ, वह जगजाहिर है। बंगाल सरकार चुप रही। बंगाल में चुनावी हिंसा में बड़ी संख्या में लोग मार दिए गए। खरगे ने कहा कि वहां की दो सीटें हम हार गए तो राष्ट्रपति शासन लगा दिया, ऐसा नहीं है। पूर्वोत्तर में 2004 से 2014 तक यूपीए राज में 11 हजार से अधिक हत्याएं हुईं लेकिन मोदी राज में 2014 के बाद हिंसा में 70 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई। विभिन्न हथियारबंद उग्रवादी संगठनों के साथ शांति समझौता किया। इस दौरान 10 हजार युवाओं ने हथियार डालकर समर्पण किया है। मणिपुर हिंसा में शुरुआती 15 दिनों में ज्यादा लोग मारे गए लेकिन बाद में हालात काफी हद तक नियंत्रित कर लिये गए। हिंसा किसी भी पार्टी के राज में हो, वह सर्वथा अनुचित है। 1993 में सात महीने तक हिंसा जारी रही लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव वहां नहीं गए। वहां पर होने वाली हिंसा की घटनाएं जातीय हैं, इसलिए हम उसका राजनीतिकरण नहीं करते हैं।

शाह ने कहा कि मणिपुर हिंसा पूरी तरह से जातीय हिंसा है, जो एक अदालती फैसले के बाद आरक्षण को लेकर शुरू हुई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अगले ही दिन उस पर रोक लगा दी थी। मणिपुर में अब राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद हालत तेजी से सुधर रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि दोनों समुदाय के लोग शांति की राह अपनाएंगे और उनसे बातचीत होगी, तब यह राष्ट्रपति शासन भी हटा दिया जाएगा। मौजूदा हालात को देखते हुए मैं सदन से अनुरोध करता हूं कि मणिपुर में राष्ट्रपति लगाए जाने की मंजूरी प्रदान करें। उसके बाद इस परिनियत संकल्प को राज्यसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया।

इससे पहले मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के संबंध में वैधानिक प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए सदन में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि मणिपुर की समस्या अत्यंत गंभीर है। हम लोग मणिपुर की समस्या को कैसे हल कर सकते हैं, इसीलिए मैं अपील कर रहा हूं कि प्रधानमंत्री वहां का दौरा करें और हालात का जायजा लें ताकि मौजूदा समस्या का निदान किया जा सके। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और एनजीओ ने मणिपुर का दौरा किया लेकिन प्रधानमंत्री मणिपुर नहीं गए। यह चिंतनीय है।

भाजपा सदस्य डा. अजीत माधवराव गोपछड़े, आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओब्राईन, सीपीआई (एम) के एए रहीम, डीएमके की डा. कनिमोझी एनवीएन सोमू, आम आदमी पार्टी (आआपा) के संजय सिंह, राजद के संजय यादव, आईयूएमएल के अब्दुल वहाब, सीपीआई के संदोष कुमार पी. और प्रियंका चतुर्वेदी आदि सदस्यों ने भाग लिया।

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